- 36.8 प्रतिशत बच्चों की फेसबुक facebook का इस्तेमाल करते हैं जबकि 45.50 प्रतिशत बच्चे इंस्टाग्राम instagram का इस्तेमाल करते हैं बिलासपुर. नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट की ओर से जुलाई 2021 में एक स्टडी की गई ये वो दौर था जब ऑनलाइन पढ़ाई चल रही थी। जिसकी रिपोर्ट बताती है कि 52.9 प्रतिशत बच्चों को चैटिंग पसंद है या लत है, वहीं केवल 10.1 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई और सीखने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा 44 प्रतिशत को म्यूजिक जबकि 31.90 प्रतिशत को स्मार्ट फोन पर गेम खेलना पसंद है। इसमें से 42.9 प्रतिशत बच्चों की सोशल मीडिया पर अपनी आईडी है। 36.8 प्रतिशत बच्चे फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं जबकि 45.50 प्रतिशत बच्चे इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करते हैं। अब बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन की उपलब्धता की बात करें तो 62.6 प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता का फोन इस्तेमाल करते हैं जबकि जबकि 30.2 प्रतिशत बच्चों के पास अपना फोन है। जबकि 19 प्रतिशत बच्चे ही लैपटॉप या टैबलेट का इस्तेमाल इंटरनेट एक्सेस के लिए करते हैं।
गतिविधि प्रतिशत चैटिंग 52.9 म्यूजिक 44 गेमिंग 31.90 सोशल मीडिया पर आईडी फेसबुक 36.8 इंस्टाग्राम 45.50 अलग-अलग क्षेत्रों का बच्चों में सोशल नेटवर्किंग ट्रेंड अध्ययन में बच्चों के सोशल नेटवर्किंग की बात करें तो उत्तर में दिल्ली एनसीआर का अध्ययन किया गया है। इसमें 41.40 प्रतिशत बच्चों का अपना सोशल मीडिया एकाउंट था और इंस्टाग्राम इनके बीच ज्यादा पॉपुलर था। वहीं दक्षिण में तेलंगाना की बात करें तो 41.30 प्रतिशत बच्चों का सोशल मीडिया एकाउंट है और यहां भी इंस्टाग्राम पॉपुलर है। वहीं पूर्व में झारखंड और ओडिशा में अध्ययन किया गया, यहां47.60 प्रतिशत बच्चों का अपना सोशल मीडिया एकाउंट है और इनके बीच फेसबुक ज्यादा पॉपुलर है। जबकि पश्चिम महाराष्ट्र में 40 प्रतिशत बच्चों का सोशल मीडिया एकाउंट है और यहां भी फेसबुक ही पॉपुलर है। नार्थ इस्ट में आसाम को लिया गया है यहां 47.1 प्रतिशत बच्चों का सोशल मीडिया एकाउंट है और इंस्टाग्राम पॉपुलर है।
चिंताजनक स्थिति इस सर्वे में चिंताजनक आंकड़ा यह सामने आया कि 23.80 प्रतिशत बच्चे बिस्तर पर सोने से पहले स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। जैसे जैसे उम्र का दायरा बढ़ता गया बेड पर स्मार्ट फोन का इस्तेमाल भी बढ़ता गया। इसकी वजह से बच्चों में विपरीत प्रभाव दिख रहे हैं। जैसे सोने की अनियमितता, नींद नहीं आना, एंजायटी और थकान प्रमुख है।
पढ़ते वक्त मोबाइल फोन को चेक करना बिस्तर पर मोबाइल उपयोग तो चिंताजनक है ही साथ में पढ़ते वक्त बार-बार मोबाइल चेक करना भी एक गंभीर विषय बनकर सामने आया है। इसकी वजह से बच्चों की एकाग्रता बाधित हो रही है, ध्यान शक्ति कमजोर हो रही है। केवल 32.7 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं जो पढ़ते वक्त अपना मोबाइल चेक नहीं करते हैं। जबकि बचे हुए हमेशा, कभीकभी या बार-बार अपना फोन चेक करते हैं। इस प्रकार 37.15 प्रतिशत बच्चों का स्मार्ट फोन की वजह से ध्यान शक्ति में कमी पाई गई।
अभिभावक करते हैं निगरानी इस अध्ययन में यह पाया गया कि 76.2 प्रतिशत अभिभावकों ने बच्चों को इंटरनेट और स्मार्ट फोन के इस्तेमाल के लिए समय निर्धारित कर दिया है। एक्सपर्ट व्यू
डॉक्टर सीजे होरा, मनोचिकित्सक जो चीजें या तकनीक दस साल बाद आनी थी वो कोविड के कारण अब आ गई है। हमारे पास मैस्मिम केस बच्चों में स्मार्ट फोन और गैजेट एडिक्शन के आते हैं। स्मार्ट फोन की वजह से बच्चों का डीक्यू काफी हाई हो गया है। अभिभावक अब ये मान लें कि बच्चों को स्मार्ट फोन से दूर नहीं किया जा सकता। इसलिए बच्चों को इसके सही इस्तेमाल के लिए प्रेरित करें, निगरानी करें और इस बात को समझने की कोशिश करें कि बच्चा स्मार्ट फोन पर जिस भी गतिविधि को पसंद कर रहा है उसमें लगा हुआ है तो क्या कारण है।
--------------- डॉ. अजय श्रीवास्तव, शिक्षाविद पहले हम मोबाइल के लिए मना करते थे, लेकिन कोविड काल के बाद उस स्थिति में नहीं हैं। अब जब सब नॉर्मल हुआ है तो इसके साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं। बच्चों का लर्निंग लेवल कम हुआ है, वो लिख नहीं पा रहे हैं, किताब पढऩे और देखने की आदत खत्म हो गई है। किताब की तुलना में उनका स्मार्ट फोन में एंगेजमेंट ज्यादा हो रहा है, स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इसका सॉल्यूशन यही है कि हम मना तो नहीं कर सकते पर उन्हें आउटडोर गतिविधि के लिए प्रेरित करें, पढई मोबाइल से करने की बजाए उसे एक रेफरेंस के तौर पर यदि आवश्यक हुआ तो यूज करने दें।