आपने अमर प्रेम तो सुना होगा पर मगर प्रेम का नजारा पहली बार देखने को मिल रहा है। बाबा सीताराम का बायां हाथ पहले ही मगरमच्छ खा चुके हैं। अब बाबा उन्हें अपना मृत देह भी भोजन बनाकर देना चाहते हैं।
कैसे मगरमच्छ ने खाया हाथ
बाबा ने बताया कि कुछ साल पहले जब वो मगरमच्छों को खाना खिला रहे थे इसी दौरान एक मगरमच्छ को एक बच्चे ने पत्थर मार दिया। ऐसे में मगरमच्छ गुस्सा हो गया और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और पानी में खींच कर ले गया। इसके बाद वो मुझे पानी में ही गोल-गोल घुमाने लगा। मुझे तो लगा कि आज मैं मर ही जाऊंगा, पर बच गया।
बाबा ने बताया कि कुछ साल पहले जब वो मगरमच्छों को खाना खिला रहे थे इसी दौरान एक मगरमच्छ को एक बच्चे ने पत्थर मार दिया। ऐसे में मगरमच्छ गुस्सा हो गया और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और पानी में खींच कर ले गया। इसके बाद वो मुझे पानी में ही गोल-गोल घुमाने लगा। मुझे तो लगा कि आज मैं मर ही जाऊंगा, पर बच गया।
कोई नहीं है बाबा का मगरमच्छों के सिवा
बाबा सीताराम का कोई नहीं है, न बच्चे, न परिवार। वो कई साल पहले जांजगीर जिले के कोटमी सोनार गांव आए थे। तब से वो यहीं के हो के रह गए हैं। इस गांव के एक तालाब में उन्होंने दो मगरमच्छ पाले थे। वो उनको रोजाना भोजन देते थे, उनसे बातें करते थे, उनके साथ ही उनका पूरा दिन बीतता था। अब ये गांव और इस गांव के लोग ही बाबा के परिवार हैं, और गमगरच्छ उनकी संतान।
बाबा सीताराम का कोई नहीं है, न बच्चे, न परिवार। वो कई साल पहले जांजगीर जिले के कोटमी सोनार गांव आए थे। तब से वो यहीं के हो के रह गए हैं। इस गांव के एक तालाब में उन्होंने दो मगरमच्छ पाले थे। वो उनको रोजाना भोजन देते थे, उनसे बातें करते थे, उनके साथ ही उनका पूरा दिन बीतता था। अब ये गांव और इस गांव के लोग ही बाबा के परिवार हैं, और गमगरच्छ उनकी संतान।