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वल्र्ड सायकल डे: लोगों ने कहा था बेवकूफी है, पर 12 दोस्तों के साथ सायकल से किया 17 दिन की यात्रा

locationबिलासपुरPublished: Jun 03, 2019 03:18:24 pm

Submitted by:

Amil Shrivas

81 साल की उम्र में आज भी फर्राटे से चलाते हैं सायकल

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वल्र्ड सायकल डे: लोगों ने कहा था बेवकूफी है, पर 12 दोस्तों के साथ सायकल से किया 17 दिन की यात्रा

बिलासपुर. भले ही हम आज तरक्की की लंबी छलांग लगा चुके हैं। नई-नई टेक्नॉलाजी के साथ परिवहन के नए साधन भी बना डाले हंै, जिसका उपयोग कर चंद मिनटों में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सकते हैं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो जीवन के शुरुआती दिनों से सायकल चला रहे हैं और देश के कोने-कोने जाकर लोगों के लिए मिसाल भी कायम कर रहे हैं। आज हम आपको ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे है जो उम्र के 81 वर्ष पूर्ण कर चुके है। उसके बाद भी फर्राटेदार सायकल चलाकर लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर देते हैं।
बिलासपुर के तालापारा पीपल चौक निवासी मकसूद अहमद अंसारी पेशे से पेटी बनाने का काम करते हैं और आज भी रोजाना 8 घंटे कड़ी मेहनत करते हैं। वे काम के सिलसिले में आज भी सायकल का उपयोग करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी कोटा, रतनपुर, तखतपुर, पथरिया आदि स्थानों में सायकल से ही जाते हैं। सायकल की प्रति दिवानगी के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि सन् 1994 में अपने 12 दोस्तों के साथ सीपत स्थित लुतरा शरीफ दरगाह सायकल से गए थे। सायकल की रोमांचक यात्रा से प्रभावित होकर सभी दोस्तों ने अजमेर शरीफ सायकल से जाना तय किया। मार्च के तपती गर्मी में सभी दोस्त कोटा, अनूपपुर, शहडोल, रीवां, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़, दिल्ली होते हुए अजमेर शरीफ पहुंचे। 17 दिनों की इस कठिन यात्रा में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपने मंजिल पर पहुंचकर उन्हें आत्मिक शांति मिली।
इसलिए मनाया जाता हैं
संयुक्त राष्ट्र ने 12 अप्रैल 2018 को विश्व सायकल दिवस मनाने की मंजूरी दी थी तथा सायकल को परिवहन के एक सरल, किफायती, भरोसमंद और पर्यावरण के अनुकूल साधन की घोषणा की थी। तब से 3 जून को विश्व सायकल दिवस मनाया जाता हैं।
आर्मी अफसर ने की थी तारीफ
एक घटना का जिक्र करते हुए मकसूद अहमद अंसारी ने बताया कि यात्रा के दौरान उनकी टीम कानपुर पहुंची। जहां आर्मी कैंप लगा हुआ था। एक साथ 12 लोगों को तपती धूप में सायकल से जाता देख आर्मी के अफसर ने उन्हें अपने पास बुलाकर धूप में यात्रा करने का कारण पूछा। जब हमने उन्हें बताया कि हम छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से अजमेर शरीफ जाने के लिए सायकल से निकले हैं तो वे बड़े प्रभावित हुए। कुछ अफसरों ने पैसे देकर अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाने की गुजारिश की।
लोगों ने कहा था ये है बेवकूफी
मकसूद अहमद अंसारी ने बताया कि जब हमारी टीम के सदस्यों ने सायकल से अजमेर शरीफ जाने की बात लोगों से कही तो उन्होंने हमारा मजाक उड़ाते हुए हमारे निर्णय को बेवकूफी बताया। इससे टीम का उत्साह ठंडा पड़ गया तथा जाने से मना करने लगे। मैंने जब उन्हें बताया कि एक वर्ष पूर्व अमेरिका के कैलिफोर्निया में रहने 65 वर्ष का एक व्यक्ति 65 किलो भारी ईसा मसीह का क्रास लेकर अमेरिका से गोवा तक पैदल यात्रा कर सकता हैं तो हम क्यों नहीं। हमें तो अपने देश में ही जाना है वो भी सायकल से। मेरी बातों से प्रभावित होकर हम सभी रवाना हो गए। वापस आने पर मोहल्लेवासियों ने हमारा जोरदार स्वागत किया और हमारी इस उपलब्धि पर बधाई दी।
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