चर्चा के दौरान अब्दुल शमीम ने बताया कि भले ही आज टेक्नॉलाजी का जमाना हैं। हर काम चुटकी बजाने जितना समय लेता हैं। मशीनी युग में भी मानव के विचार और संवेदना उनके काम को प्रभावित करते हैं। हम जिस विचारधारा से काम करेंगे वह हमारे कार्यों में दिखाई देगा। फोटोग्राफी के लिए आप जितने भी उपकरण उपयोग कर लें, विज्ञान कितनी भी तरक्की कर लें। लेकिन जब तक फोटोग्राफर में संवेदना, विचार या काम के प्रति समर्पण नहीं होगा तब तक अच्छी फोटोग्राफी की कल्पना नहीं की जा सकती है। उन्होंने बताया कि मेरे गुरु स्व. शालिगराम नरडे ने कहा था कि-काम को सबसे आगे रखो और पैसे को पीछे चलने के लिए मजबूर करो। कामयाबी आपके पास जरूर आएगी। इस सूत्र को अपने जीवन में लागू कर मैं 40 वर्षों से एक क्षेत्र में सक्रिय हंू। लेकिन समय बदलने के साथ लोगों की विचारधारा भी बदल गई हैं। लोग काम करने से पहले पैसों को आगे रखने की सोचते हैं।
गिरते धूमकेतु की फोटो खींचना चुनौती भरा
अब्दुल शमीम ने बताया कि सीएमडी कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद गोल बाजार स्थित अनुराधा स्टूडियो में फोटोग्राफी की नौकरी करने लगा। जिसमें आउटडोर और इनडोर फोटोग्राफी करता था। जिसमें मेरा काम शादी, बड़ी-बड़ी कंपनी और स्कूलों में फोटो खिंचने का था। उसी समय पूरी दुनिया में धरती पर धूमकेतु गिरने की चर्चा चल रही थी। सीएमडी कॉलेज में भौतिकीय शास्त्र के प्रोफेसर लालचंदानी मेरे स्टूडियो में आए और मुझे गिरते धूमकेतु की फोटो खींचने का चैलेंज किया। मैं उनके चैलेंज को स्वीकार करते हुए साजो-समान लेकर रात 1 बजे उनके घर चल गया। एसाइ पेनटेक्स 35 एमएम के कैमरे से पांच मिनट में अलग-अलग टाइमिंग में 30 फोटो क्लिक किया। लगातार 3 घंटे की भारी मशक्कत के बाद एक बेहतरीन फोटो निकालकर लालचंदानी सर को दिया। मेरे काम से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया।
अब्दुल शमीम ने बताया कि सीएमडी कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद गोल बाजार स्थित अनुराधा स्टूडियो में फोटोग्राफी की नौकरी करने लगा। जिसमें आउटडोर और इनडोर फोटोग्राफी करता था। जिसमें मेरा काम शादी, बड़ी-बड़ी कंपनी और स्कूलों में फोटो खिंचने का था। उसी समय पूरी दुनिया में धरती पर धूमकेतु गिरने की चर्चा चल रही थी। सीएमडी कॉलेज में भौतिकीय शास्त्र के प्रोफेसर लालचंदानी मेरे स्टूडियो में आए और मुझे गिरते धूमकेतु की फोटो खींचने का चैलेंज किया। मैं उनके चैलेंज को स्वीकार करते हुए साजो-समान लेकर रात 1 बजे उनके घर चल गया। एसाइ पेनटेक्स 35 एमएम के कैमरे से पांच मिनट में अलग-अलग टाइमिंग में 30 फोटो क्लिक किया। लगातार 3 घंटे की भारी मशक्कत के बाद एक बेहतरीन फोटो निकालकर लालचंदानी सर को दिया। मेरे काम से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया।
काम के दौरान मैंने ये जाना कि फोटोग्राफर को पत्रकार की सोच रखनी जरूरी
चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि हमारे समय में परितोष चक्रवर्ती रिपोर्टर थे जो लगभग सभी अखबारों में अपनी सेवाएं दे चुके थे। रात करीब 1 बजे मुझे स्टूडियो से रेलवे स्टेशन लेकर गए। जहां ठंड के मौसम में फुटपाथ में सोए हुए गरीबों की तस्वीर लालटेन की रोशनी पर लेने को कहा। जिसमें लोगों के फटे हुए कपड़े और कंबल को फोकस करने का कहा गया। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि फोटोग्राफरों को पत्रकारों की तरह सोच रखनी जरूरी हैं। आज भी कई ऐसे फोटोग्राफर हैं जो पत्रकारों की तरह फोटो खिंच रहे हैं। हमारे समय में ज्यादातर पत्रकार फोटोग्राफर ही हुआ
करते थे।
चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि हमारे समय में परितोष चक्रवर्ती रिपोर्टर थे जो लगभग सभी अखबारों में अपनी सेवाएं दे चुके थे। रात करीब 1 बजे मुझे स्टूडियो से रेलवे स्टेशन लेकर गए। जहां ठंड के मौसम में फुटपाथ में सोए हुए गरीबों की तस्वीर लालटेन की रोशनी पर लेने को कहा। जिसमें लोगों के फटे हुए कपड़े और कंबल को फोकस करने का कहा गया। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि फोटोग्राफरों को पत्रकारों की तरह सोच रखनी जरूरी हैं। आज भी कई ऐसे फोटोग्राफर हैं जो पत्रकारों की तरह फोटो खिंच रहे हैं। हमारे समय में ज्यादातर पत्रकार फोटोग्राफर ही हुआ
करते थे।