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एंटीडिप्रेसेंट लेते समय रखे इन बातों का ध्यान

Published: Jan 04, 2018 05:37:53 am

आज जब हर दस में से आठ व्यक्ति अवसाद और चिंता से ग्रस्त हो रहे हैं, तो एंटीडिप्रेसेंट या ट्रैक्विंलाइजर्स द्वारा मन को शांत करने की कोशिश भी बढ़ रही है

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आज जब हर दस में से आठ व्यक्ति अवसाद और चिंता से ग्रस्त हो रहे हैं, तो एंटीडिप्रेसेंट या ट्रैक्विंलाइजर्स द्वारा मन को शांत करने की कोशिश भी बढ़ रही है। जाहिर है, इन दवाओं का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ रहा है।

चिंता, अवसाद या तनाव का शमन करने वाली दवाओं के विवेकहीन उपयोग से सेहत को कई नुकसान हो सकते हैं। ट्रैंक्विलाइजर शरीर के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को डिप्रेस कर देते हैं जबकि एंटीडिप्रेसेंट हमारी ब्रेन केमिस्ट्री को बदल डालते हैं। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. मैक्स पेम्बर्टन कहती हैं, ‘दोनों दवाएं हमारी फीलिंग्स को खत्म कर देती हैं और इमोशनल रिएक्शन को कुंद कर देती हैं।’

इनके सेवन से यौनेच्छा में कमी, ऊर्जा ह्वास, डिसकनेक्शन और यहां तक कि कई बार आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती हैं। इन दवाओं के सेवन करने वाले अक्सर सुस्त रहने लगते हैं।

मेडिकल साइकोथेरेपिस्ट डॉ. रिचर्ड वुलमैन कहते हैं, कोई भी कुशल और पेशेवर जनरल फिजीशियन या मनोचिकित्सक रोगी का पूरा क्लीनिकल डायग्नोसिस करता है, उसके लक्षणों की पड़ताल करता है और फिर तय करता है कि रोगी को सचमुच केमिकल असिस्टेंस दवा की जरूरत है या नहीं।

चिकित्सक को अच्छी तरह मालूम होता है कि एक बार रोगी को एंटीडिप्रेसेंट देने के बाद उसे रोगी पर लगातार नजर रखनी पड़ेगी। चर्चित किताब ‘द फिक्स’ के लेखक डेमियन थाम्पसन ने अपनी किताब में मूड बदलने वाली दवाओं पर हमारी बढ़ती निर्भरता का गहन विश्लेषण किया है।


वे कहते हैं, ‘कुछ दवाएं सुनिश्चित करती हैं कि कतिपय अनुभूतियां आप तक न पहुंचें। कुछ मामलों में यह व्यक्तित्व को धुंधला कर देती हैं और व्यक्ति अपने आप स्वभाव से हटकर व्यवहार करने लगता है।’ इसलिए बेहद जरूरी है कि एंटीडिप्रेसेंट या ट्रैंक्विलाइजर कुशल एवं योग्य चिकित्सक की देखरेख में सीमित डोज में ही ली जाएं।

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