हाइड्रो थैरेपी, मड थैरेपी और साउंड थैरेपी अब सामान्य होती जा रही हैं, लेकिन इनके अलावा भी कुछ अन्य थैरेपी हैं जो लोगों को आजकल काफी पसंद आ रही हैं। जानें कुछ ऐसी थैरेपीज के बारे में, जो आपकी बीमारियों को दूर करके जीवन को फिर से सामान्य बनाने में मददगार हो सकती हैं-
डांस या मूवमेंट थैरेपी
यह व्यक्तिकी मानसिक, शारीरिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक क्षमता को बेहतर बनाने का काम करती है। यह थैरेपी उन लोगों के लिए काफी उपयोगी मानी जाती है, जो जीवन में किसी बड़ी हानि को लेकर परेशान हैं। इसमें सबसे पहले एक लक्ष्य तय किया जाता है और उसे प्राप्त करने के लिए कुछ सेशन्स में डांस या मूवमेंट थैरेपिस्ट व्यक्ति के मौजूदा मूवमेंट पैटर्न को समझकर उसके अनुरूप थैरेपी को आगे बढ़ाते हैं।
मूवमेंट थैरेपिस्ट्स के अनुसार शरीर और मस्तिष्क एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं जिससे मोबिलिटी, फ्लेक्सिबिलिटी, पोश्चर अवेयरनेस, इंजरी प्रिवेंशन और हैल्थ वर्थ प्रमोशन पर फोकस किया जाता है।
सॉल्ट थैरेपी
प्राकृतिक रूप से ही नमक में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इन्फ्लैमेट्री खूबियां होती हैं। नमक श्वसन मार्ग और त्वचा में मौजूद सूजन को कम करता है और सफाई का काम करता है। इसमें इलाज के दौरान कमरे की दीवारों और फर्श को नमक से पैक किया जाता है। इस बीच एक मशीन का भी इस्तेमाल किया जाता है जो नमक के छोटे टुकड़ों को बारीक धूल के रूप में पीसती है। मरीज को एक निश्चित समय के लिए कमरे में बुलाया जाता है।
सांस द्वारा नमक के बारीक टुकड़े फेफड़ों और सांसनली में जाते हैं और सांस लेने के रास्ते की सफाई करके विषैले पदार्थांे को बाहर निकालते हैं। इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है साथ ही सांस संबंधी बीमारियों से भी बचाव होता है। इससे किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं होता। फिर भी यदि आप हृदय रोग या हाई बीपी से परेशान हैं तो थैरेपी लेने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
बैच फ्लॉवर थैरेपी
जब किसी मरीज में गंभीर डिप्रेशन के लक्षण नजर आते हैं तो विशेषज्ञ उसे बैच फ्लॉवर थैरेपी करवाने का सुझाव देते हैं। अनिद्रा या तनाव जैसी परेशानियों में यह थैरेपी काफी कारगर है। इससे भावनात्मक असंतुलन खत्म हो जाता है। थैरेपी के दौरान बैच एसेंस तैयार करने के लिए करीब 38 तरह के फूल काम में लिए जाते हैं। इसमें चेरी प्लम, वाइल्ड रोज, वाइट चेस्टनट, वाटर वाइलेट, क्रैब एप्पल, स्टार ऑफ और बेथलेहम खास हैं।
इस दौरान फूलों को पानी के साथ मिक्स करके एसेंस तैयार किया जाता है और बूंद-बूंद करके पिया जाता है। जरूरत पडऩे पर कई बार इसे कान, होंठ, छाती आदि पर भी मला जा सकता है। इससे मरीज के अंदर की नकारात्मकता, किसी तरह के डर या व्यर्थ की चिंता आदि को दूर करके उसे सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जाता है।
कलर या क्रोमो थैरेपी
कलर थैरेपिस्ट और आर्टिस्ट अमीषा मेहता कहती हैं कि जिस तरह हमारे शरीर में मिनरल्स और विटामिन्स की कमी हो जाती है, उसी तरह से शरीर में रंगों की कमी भी हो सकती है। इससे भी शरीर में कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती हैं। कुछ खास रंगों की कमी होने पर शरीर में थकान महसूस हो सकती है। इस थैरेपी में शरीर की पांचों इंद्रियों का विशेष तकनीक के साथ इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें रंगीन लाइट का एक्सपोजर, खास रंगों को पहनना और विभिन्न रंगों का भोजन करना आदि शामिल है। सर्टिफाइड कलर थैरेपिस्ट ही आपको बता सकता है कि जीवन में किसी तरह की समस्या आने पर रंगों का सही सामंजस्य क्या हो सकता है और इस थैरेपी को कितने समय के लिए उपयोग में लेना है।