इसमें रीढ़ की हड्डी और कूल्हे के जोड़ पर भी असर होता है। इसके लिए लिम्ब लेंथनिंग सर्जरी की जाती है। साथ ही जो व्यक्ति स्वस्थ होने के बावजूद कम कद वाले हैं वे लंबाई बढ़ाने के लिए लिम्ब लेंथनिंग जैसी नई सर्जरी की मदद ले रहे हैं। भारत में इसका चलन काफी बढ़ गया है लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी देखे गए हैं।
यह है सर्जरी
यह सर्जरी दुर्घटना, पोलियो, जन्मजात विकृतियों और आनुवांशिक कारणों से यदि पैरों के टेढ़े होने की समस्या है तो की जाती है। लिम्ब लेंथनिंग से पैरों के टेढ़ेपन में सुधार होता है और पैर कुछ हद तक सीधा होकर चलायमान स्थिति में आ जाता है। कुछ मामलों में लक्षण शुरुआती अवस्था के बजाय शारीरिक विकास के दौरान देखने को मिलते हैं।
सावधानी
कुछ दिन देखरेख में रखने के बाद मरीज को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी जाती है। इसके बाद मरीज को ६ हफ्ते से लेकर ६ माह तक हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधि करने की सलाह दी जाती है। कई मामलों में मरीज की फिजियोथैरेपी भी की जाती है।
यहां है उपलब्ध
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई के अलावा अन्य शहरों में भी लिम्ब लेंथनिंग तकनीक को अपनाया जा रहा है। यह अधिकांशत: प्राइवेट अस्पतालों में ही उपलब्ध है।
ऐसे करते हैं
लि म्ब लेंथनिंग सर्जरी में पैर के ऊपरी व निचले सिरे को एक मैटल प्लेट, रॉड और स्कू्र से जोड़ देते हैं। सर्जरी के बाद इलिजारोव तकनीक (एक तरह का फ्रेम जिसे पैर को सीधा करने के लिए बाहरी रूप से पहनाते हैं) का भी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा यदि मरीज के पैर में कैंसर ट्यूमर हो तो प्रभावित हिस्से को हटाकर मरीज या फिर उसके किसी परिजन की हड्डी या कोशिका को लेकर उस जगह की भरपाई करते हैं। धीरे-धीरे कुछ समय के बाद पैर की स्थिति सामान्य होने लगती है।
कॉस्मेटिक उपयोग
युवाओं में इसका चलन लंबाई बढ़ाने के लिए बढ़ा है। इसमें घुटने के नीचे पिंडली में मौजूद टीबिया व फेब्युला हड्डी को बे्रक कर उसमें टेलिस्कोपिक रॉड डालते हैं। इसके बाद कुछ इंच का स्पेस देकर एक मैटेलिक प्लेट के साथ स्कू्र से पैर में फिक्स करते हैं। हड्डी के विकास के साथ रॉड ऊपर-नीचे की हड्डी को जोड़ती है। रिकवरी में हड्डी रोजाना एक मिमी. की लंबाई तक बढ़ती है व प्रभावित हिस्से के चारों तरफ नई मांसपशी, नसों, धमनियों, त्वचा व हड्डी का निर्माण होता है। अकॉन्ड्रोप्लासिया के मरीज (हाथ-पैरों की कम लंबाई) भी इसकी मदद लेते हैं।
दुष्परिणाम
सर्जरी के बाद रिकवरी में कम से कम दो महीने लगते हैं। पैर में लगाई गई रॉड और स्क्रू के कारण हड्डी व मांसपेशी में इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। देखरेख न करने पर पैर की कोशिकाएं और मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।