उपवास सेहत को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है जबकि व्रत आध्यात्म की दृष्टि से किया जाता है। नेचुरोपैथी में उपवास की प्रक्रिया में शरीर से विषैले पदार्थों को दूर करने के लिए व्यक्ति को किसी एक प्रकार के खानपान जैसे फलाहार या लिक्विड डाइट आदि पर रखा जाता है।
लाभ : उपवास के दौरान डिटॉक्सीफिकेशन से रक्तसंचार दुरुस्त होकर बाल काले रहते हैं। त्वचा में चमक बढ़ती है, शरीर का तापमान सामान्य रहता है और एसिडिटी, रुमेटिक आर्थराइटिस जैसे रोगों में आराम मिलता है।
कौन कर सकता है : वैसे तो कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है लेकिन गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, कमजोर व्यक्ति, किडनी व हृदय के रोगी, डायबिटीज और थायरॉइड, अल्सर व एसिडिटी होने पर उपवास न करें। अनशन के दौरान जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक बिना खाए-पिए उपवास रखता है तो धीरे-धीरे उसके शरीर से सबसे पहले कार्बोहाइड्रेट खत्म होता है फिर वसा और प्रोटीन कम होने लगता है व कीटोंस बढ़ जाते हैं, ऐसे में उपवास को खत्म करना जरूरी हो जाता है।
कितने दिन का हो उपवास : रोग के अनुसार उपवास दो, तीन, पांच, छह से सात दिन या उससे अधिक का भी हो सकता है जैसे बुखार होने पर रोगी को तीन दिन का उपवास कराया जाता है। मोटापे की समस्या होने पर व्यक्ति को वसा युक्त चीजें खाने से परहेज करना होता है। ऐसे में उपवास के दिन व्यक्ति की मौजूदा स्थिति पर निर्भर करते हैं।
ध्यान रखें : हर व्यक्ति की अपनी शारीरिक क्षमता होती है इसलिए उपवास करने से पूर्व विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस दौरान भरपूर पानी पिएं और नियमित पेशाब आदि के लिए जाएं। जब तक खुद की इच्छा न हो तब तक उपवास न करें। उपवास खत्म होने के फौरन बाद तला-भुना व गरिष्ठ भोजन न करें, इससे एसिडिटी व अपच की समस्या हो सकती है।