पोषक तत्त्वों की कमी
तनाव और शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी कई रोगों का कारण बन सकती है। खासतौर पर मनोरोग। साथ ही शरीर में सोडियम की कमी या दिमाग के विशेष भाग में सिकुडऩ आने से बुढ़ापे में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ती हैं। इसके साथ तनाव में अधिक समय रहने से भी मानसिक सेहत बिगड़ती है व व्यक्ति सामान्य से पूरी तरह अलग रहता है। विटामिन की कमी, इलेक्ट्रोलाइट इंबैलेंस की वजह से भी परेशानी तेजी से बढऩे लगती है।
लक्षणों को समय पर पहचानें
उम्र बढऩे के साथ व्यक्ति में कई शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। अहम है बार-बार भूलने की समस्या जैसे खाना खाया या नहीं, घर का रास्ता भूलना, पैसे किसे दिए, नाम व पता याद न होना आदि। इस समस्या को मेडिकली डिलेरियम भी कहते हैं। ऐसे में रोगी विपरित स्थिति में रहता है।
परेशानी को समझें
बुजुर्गों की परेशानी को समझना चाहिए। उन्हें अकेलेपन और उपेक्षित होने का अहसास न होने दें और न ही ऐसा व्यवहार करें। लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहने से कई बार वे जीवन से निराशाभरा कदम उठा लेते हंै। उन्हें अपनत्व और प्यार दें ताकि समस्या कम हो।
ऐसे होता इलाज
उपयोगी थैरेपी : बढ़ती उम्र में होने वाली दिमाग संबंधी समस्याओं के इलाज में कॉग्नेटिव, बिहेवरल व साइको थैरेपी के साथ दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इनसे रोगी के दिमाग में बैठ चुकी नकारात्मक बातों को निकालने के साथ उसका जीवन सामान्य करते हैं। रोगी की काउंसलिंग कर हर सवाल का जवाब देकर समस्या का हल निकालते हैं। इस तरह की समस्या से जूझ रहे रोगी का समय रहते इलाज किया जाए तो वह बड़ी परेशानी से बच सकता है। योग ?, प्राणायाम और ध्यान रोगी के लिए लाभकारी होते हैं।
खानपान पर ध्यान दें : जब व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या से गुजरता है तो उसका खानपान पूरी तरह असंतुलित हो जाता है जिसकी वजह से उसकी सेहत तेजी से बिगडऩे लगती है। ऐसे में रोगी के खानपान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। दूध के साथ बादाम उसके लिए फायदेमंद हो सकता है जो दिमाग और शरीर को मजबूत बनाएगा। सभी तरह के मौसमी फल और सब्जियों को भोजन में शामिल करें। कई बार रोगी जिद्दी हो जाता है। ऐसे में किसी परिजन को खाना खिलाना चाहिए ताकि उनमें शारीरिक कमजोरी न आ सके।
40 की उम्र पार करने के बाद सेहत के प्रति सचेत रहकर जरूरी जांचें नियमित रूप से कराएं।
30 से 40 मिनट रोज फिजिकल एक्टिविटी करें। इसमें मार्केट जाना, खेलकूद, वॉक शामिल करें।
मानसिक रोगों से बचाव
40-50 वर्ष की उम्र से ही अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें।
नियमित जांचें कराएं, बीपी, शुगर आदि है तो नियंत्रित रखें।
रिटायर होने के बाद भी खुद को सामाजिक रूप से जोड़े रखें।
दिमाग एक्टिव रखने के लिए चेस खेलें या पजल्स सॉल्व करें।
फ्रैंड सर्किल बनाएं, परिवार के साथ बात करें, मिलनसार बनें।
अगर फिर भी समस्या लगे तो मनोचिकित्सक से संपर्क करें।