पीलिया की समस्या
दूषित पानी और भोजन से हेपेटाइटिस-ए व ई जैसे वायरल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है और पीलिया का कारण बनता है। ऐसे में लिवर पाचन रस को स्रावित नहीं कर पाता और ये रस रक्तमें मिलने लगते हंै। शराब, अफीम, ड्रग्स आदि के सेवन से लिवर और आंतों के बीच रुकावट आने से भी इस रोग की आशंका रहती है। खानपान में सुधार, आराम और दवाओं से इस बीमारी का इलाज किया जाता है।
दूषित पानी और भोजन से हेपेटाइटिस-ए व ई जैसे वायरल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है और पीलिया का कारण बनता है। ऐसे में लिवर पाचन रस को स्रावित नहीं कर पाता और ये रस रक्तमें मिलने लगते हंै। शराब, अफीम, ड्रग्स आदि के सेवन से लिवर और आंतों के बीच रुकावट आने से भी इस रोग की आशंका रहती है। खानपान में सुधार, आराम और दवाओं से इस बीमारी का इलाज किया जाता है।
लक्षण : त्वचा व आंखों में पीलापन, खुजली होना, बुखार, उल्टी, दस्त, वजन में लगातार कमी और स्वभाव में चिड़चिड़ापन और भूख न लगना। फैटी लिवर क्या है
लिवर में वसा का अधिक जमाव फैटी लिवर कहलाता है। वसायुक्त भोजन करने, अनियमित दिनचर्या जैसे व्यायाम न करना, तनाव, मोटापा, शराब का सेवन या किसी बीमारी के कारण लंबे समय तक दवाइयां लेने से फैटी लिवर की समस्या हो सकती है।
लिवर में वसा का अधिक जमाव फैटी लिवर कहलाता है। वसायुक्त भोजन करने, अनियमित दिनचर्या जैसे व्यायाम न करना, तनाव, मोटापा, शराब का सेवन या किसी बीमारी के कारण लंबे समय तक दवाइयां लेने से फैटी लिवर की समस्या हो सकती है।
लक्षण : पाचन प्रक्रिया में गड़बड़ी, पेट के दाईं और मध्य भाग में हल्का दर्द, थकान, कमजोरी, भूख न लगना और कई बार पेट पर मोटापा दिखने लगता है। कारणों का पता लगाकर विशेषज्ञ दिनचर्या में बदलाव करने के लिए कहते हैं। स्थिति गंभीर होने पर लिवर सिरोसिस भी हो सकता है और ट्रांसप्लांट ही इसका अंतिम इलाज होता है।
सिरोसिस रोग
श राब का सेवन, वसायुक्तभोजन और खराब जीवनशैली की वजह से कई बार लिवर में रेशे बनने लगते हैं जो कोशिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं, इसे फाइब्रोसिस कहते हैं। इस स्थिति में लिवर अपने वास्तविक आकार में न रहकर सिकुडऩे लगता है और लचीलापन खोकर कठोर हो जाता है। लिवर ट्रांसप्लांट से इसका इलाज किया जाता है।
लक्षण : पेटदर्द, खून की उल्टियां, पैरों में सूजन,बेहोशी, मोशन के दौरान रक्त आना, शरीर पर अत्यधिक सूजन और पेट में पानी भर जाने जैसे लक्षण होने लगते हैं।
श राब का सेवन, वसायुक्तभोजन और खराब जीवनशैली की वजह से कई बार लिवर में रेशे बनने लगते हैं जो कोशिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं, इसे फाइब्रोसिस कहते हैं। इस स्थिति में लिवर अपने वास्तविक आकार में न रहकर सिकुडऩे लगता है और लचीलापन खोकर कठोर हो जाता है। लिवर ट्रांसप्लांट से इसका इलाज किया जाता है।
लक्षण : पेटदर्द, खून की उल्टियां, पैरों में सूजन,बेहोशी, मोशन के दौरान रक्त आना, शरीर पर अत्यधिक सूजन और पेट में पानी भर जाने जैसे लक्षण होने लगते हैं।
लिवर फेल्योर
लिवर की कोई भी बीमारी यदि लंबे समय तक चले या उसका ठीक से इलाज न हो तो यह अंग काम करना बंद कर देता है जिसे लिवर फेल्योर कहते हैं। यह समस्या दो प्रकार की होती है। पहली एक्यूट लिवर फेल्योर, जिसमें मलेरिया, टायफॉइड, हेपेटाइटिस- ए, बी, सी, डी व ई जैसे वायरल, बैक्टीरियल या फिर किसी अन्य रोग से अचानक हुए संक्रमण से लिवर की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
लिवर की कोई भी बीमारी यदि लंबे समय तक चले या उसका ठीक से इलाज न हो तो यह अंग काम करना बंद कर देता है जिसे लिवर फेल्योर कहते हैं। यह समस्या दो प्रकार की होती है। पहली एक्यूट लिवर फेल्योर, जिसमें मलेरिया, टायफॉइड, हेपेटाइटिस- ए, बी, सी, डी व ई जैसे वायरल, बैक्टीरियल या फिर किसी अन्य रोग से अचानक हुए संक्रमण से लिवर की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
लिवर सिरोसिस होने की एक वजह लंबे समय से शराब पीना है जिससे लिवर फेल्योर हो सकता है। इसमें बचने की संभावना १० फीसदी ही रहती है। दूसरा, क्रोनिक लिवर फेल्योर है जो लंबे समय से इस अंग से जुड़ी बीमारी के कारण होता है। इन दोनों अवस्थाओं में लिवर ट्रांसप्लांट से स्थायी इलाज होता है।
ट्रांसप्लांट तकनीक
ट्रांसप्लांट सर्जरी में लिवर देने वाला व्यक्ति(डोनर) और लेने वाला व्यक्ति(रेसीपिएंट) का ब्लड ग्रुप मिलाना जरूरी होता है। जीवित डोनर के लिवर का ४० प्रतिशत हिस्सा काटकर रेसीपिएंट के शरीर में सर्जरी द्वारा लगाया जाता है। डोनर का लिवर डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं और खानपान से लगभग 2-3 माह में रिकवर हो जाता है। इस तकनीक की सफलता 70 फीसदी तक होती है। निजी अस्पताल में ट्रांसप्लांट का खर्चा लगभग २५-३० लाख व सरकारी अस्पतालों में १०-१५ लाख रुपए आता है।
ट्रांसप्लांट सर्जरी में लिवर देने वाला व्यक्ति(डोनर) और लेने वाला व्यक्ति(रेसीपिएंट) का ब्लड ग्रुप मिलाना जरूरी होता है। जीवित डोनर के लिवर का ४० प्रतिशत हिस्सा काटकर रेसीपिएंट के शरीर में सर्जरी द्वारा लगाया जाता है। डोनर का लिवर डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं और खानपान से लगभग 2-3 माह में रिकवर हो जाता है। इस तकनीक की सफलता 70 फीसदी तक होती है। निजी अस्पताल में ट्रांसप्लांट का खर्चा लगभग २५-३० लाख व सरकारी अस्पतालों में १०-१५ लाख रुपए आता है।
सूजन की वजह
शराब के सेवन, मोटापा, हेपेटाइटिस वायरस आदि से जब लिवर का आकार बढ़ जाता है तो इसे आम भाषा में लिवर में सूजन कहते हैं। यह साधारण स्थिति से लेकर गंभीर रोग का लक्षण भी हो सकती है। इसका पता आमतौर पर रोगी को नहीं चलता। जांचों के दौरान ही यह समस्या स्पष्ट हो पाती है।
शराब के सेवन, मोटापा, हेपेटाइटिस वायरस आदि से जब लिवर का आकार बढ़ जाता है तो इसे आम भाषा में लिवर में सूजन कहते हैं। यह साधारण स्थिति से लेकर गंभीर रोग का लक्षण भी हो सकती है। इसका पता आमतौर पर रोगी को नहीं चलता। जांचों के दौरान ही यह समस्या स्पष्ट हो पाती है।