बॉडी एंड सॉल

जानिए क्यों भुलक्कड़ बन रहे हैं आप

उम्र के साथ स्मरण-शक्ति कमजोर होना तो सामान्य बात है, लेकिन युवाओं और कम उम्र के लोगों की याद्दाश्त कमजोर होना इन दिनों चिकित्सा विज्ञानियों की भी चिंता का कारण बना हुआ है

Jan 05, 2020 / 04:14 pm

विकास गुप्ता

short memory problems

दिमाग को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए भी नियमित मानसिक व्यायाम की आवश्यकता होती है, लेकिन तकनीक के इस्तेमाल ने हमें आसानी से गणना करने, शब्द ढूंढने व उपयोग करने तथा तथ्य व आंकड़ों को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति की ओर धकेल दिया है। इससे दिमाग का काम कम हो गया। लिहाजा मैमोरी लॉस होने लगी है, जिसे किसी भी मायने में सही नहीं कहा जा सकता है।

उम्र के साथ स्मरण-शक्ति कमजोर होना तो सामान्य बात है, लेकिन युवाओं और कम उम्र के लोगों की याद्दाश्त कमजोर होना इन दिनों चिकित्सा विज्ञानियों की भी चिंता का कारण बना हुआ है। जानकार इसके लिए तकनीक पर बढ़ती निर्भरता को बड़ा कारण मान रहे हैं। दरअसल, आजकल किसी भी तथ्य, अंक या शब्द को याद रखने की हम कोशिश ही नहीं करते। इन्हें अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में रिकॉर्ड या फीड कर देते है। इस तरह इंसान अपने दिमाग को ‘आरामतलब’ बनाता जा रहा है। नतीजा यह कि जब किसी महत्वपूर्ण बात को भी याद रखना हो, तो मस्तिष्क अपना आलस नहीं छोड़ता।

ऐसे हैं शोध के नतीजे –
जापान की होक्काइडो यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ मेडिसन के शोधकर्ताओं ने 20 से 35 साल आयु वाले 150 लोगों का अध्ययन किया। इसमें सामने आया कि 10 में से तकरीबन 2 लोगों को मैमोरी लॉस या भूलने की बीमारी है। कुछ-कुछ ऐसे ही नतीजे ब्रिटेन के नौर्थम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के शोध के भी हैं। इन सभी शोध-अध्ययनों में प्रमुख तथ्य यही है कि तकनीक के कारण दिमागी कसरत नहीं हो पाती है।

पीढ़ियों पर असर?
हालांकि यह तथ्य अभी तक शोध और चर्चा तक ही सीमित है, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मैमोरी-प्रोब्लम धीरे-धीरे अगली पीढ़ी तक भी पहुंच सकती है। इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि आने वाले कुछ सालों में तकनीक का और विकास हो जाएगा तथा नई से नई तकनीक बच्चों की पहुंच में होगी। नई तकनीक हमारे आने वाले को भले ही सुखद बना रही हो लेकिन बीमारी भी दे रही है।

हद से ज्यादा निर्भरता –
गैजेट्स और तकनीक पर हमारी निर्भरता हद से ज्यादा हो चुकी है। युवाओं को लेकर हुए ऑनलाइन सर्वे में 70 फीसदी से ज्यादा लोगों का यह कहना था कि वे अपने गैजेट्स के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। इस यांत्रिक निर्भरता ने इंसान के दिमाग पर गहरा असर डाला है। बैंक एकाउंट नम्बर, पासवड्र्स, दोस्तों-रिश्तेदारों की सालगिरह, फोन नम्बर्स, महत्वपूर्ण दिवस और बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियां हमारी मैमोरी से आउट हो चुकी हैं।

और भी हो रहीं बीमारियां…
गर्दन व कंधे का दर्द
मोबाइल-स्मार्ट फोन के इस्तेमाल के दौरान घंटों गर्दन झुकाकर स्क्रीन में झांकने वाले युवाओं को कंधे और गर्दन में दर्द की समस्या सताने लगती है।

 

उंगलियों में समस्या –
टैक्टिंग और चैटिंग के शौकीन युवाओं में उंगलियों और अंगूठे में सुन्नता या संवेदनशून्यता की शिकायत भी देखने को मिल रही है। मोबाइल के की-पैड के अत्यधिक इस्तेमाल से गंभीर स्नायुरोग कार्पल टनल सिंड्रोम का खतरा रहता है।

 

सूख रहा आंखों का पानी-
अंधेरे में मोबाइल फोन की तेज रोशनी नुकसानदायी हो सकती है। कंप्यूटर स्क्रीन पर लगातार आंखें गढ़ाए रखने के कारण आंखों में ‘ड्राइनेस’ बढ़ने की समस्या आम है। इसे ‘ड्राइ आई सिंड्रोम’ कहते हैं।

 

आ रहा बहरापन-
कानों में लगातार लीड या ईयरफोन लगाने से बहरापन या कम सुनाई देने की समस्या बढ़ रही है। चिकित्सक भी कानों में लगातार ईयरफोन नहीं लगाने की सलाह देते हैं।

 

दिल पर भी असर-
ईसीजी के दौरान जैसे इलेक्ट्रिक मैग्नेटिक सिग्नल कुछ समय के लिए हृदय की गति को नियंत्रित करता है, उसी तरह मोबाइल के रेडिएशन का असर भी सीधे हृदय की धमनियों पर पड़ता है। दिल की सबसे छोटी वाली आर्टरी इसके प्रभाव में जल्दी आती है।

हर छोटी से छोटी गणना के लिए कैल्क्यूलैटर के इस्तेमाल ने बच्चों को सामान्य गणित से भी दूर कर दिया है। बड़ा प्रभाव यह है कि बच्चे साधारण जोड़-बाकी भी बगैर कैल्क्यूलैटर के नहीं करते। दिमाग को भी इसकी आदत नहीं रही। शरीर विज्ञानियों के मुताबिक मानव शरीर के भीतरी और बाहरी अंगों की प्रकृति (नेचर) एक जैसी है। इनसे जितना काम लिया जाए, उतनी ही इनकी क्षमता भी बढ़ती है। दिमाग को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए भी नियमित मानसिक व्यायाम की आवश्यकता होती है, लेकिन तकनीक के इस्तेमाल ने हमें आसानी से गणना करने, शब्द ढूंढने व उपयोग करने तथा तथ्य व आंकड़ों को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति की ओर धकेल दिया है।

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