की-होल सर्जरी: स्पोट्र्स इंजरी का इलाज दवा और एक्सरसाइज के साथ-साथ बैड रेस्ट होता है जिससे क्षतिग्रस्त हिस्से को रिपेयर होने का मौका मिल सके। गंभीर चोट के मामले में दर्द और सूजन से लंबे समय तक आराम न मिलने पर की-होल सर्जरी करते हैं जिसके बाद रोगी या खिलाड़ी पूरी तरह से ठीक हो जाता है। वे अपना हर काम या पंसदीदा खेल आसानी से खेल व कर सकता है। इस तकनीक में छोटे छेद के जरिए दूरबीन तकनीक की मदद से क्षतिग्रस्त कोशिका को रिपेयर कर पुरानी अवस्था में लाते हैं जिसे आथ्र्राेस्कोपी सर्जरी भी कहते हैं। दर्द-सूजन पर ध्यान दें: स्पोट्र्स इंजरी ऐसी चोट होती है जिसमें जख्म तो नहीं दिखता लेकिन अंदरूनी रूप से शरीर में असहनीय दर्द होता है। इसमें हड्डियां टूटने, मोच आने, अंग, मांसपेशी आदि का अपनी जगह से खिसकने व लिगामेंट के क्षतिग्रस्त होने जैसी समस्या होती है। स्पोट्र्स इंजरी सिर्फ खिलाडिय़ों को ही नहीं रोजमर्रा की जिंदगी में किसी को भी हो सकती है। इस इंजरी में जोड़ या शरीर के किसी अन्य हिस्से के लिगामेंट या कोशिका में चोट लग जाती है जिससे पीडि़त को या खिलाड़ी को चलने-फिरने में परेशानी होने के साथ असहनीय दर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में हर ऐसी चोट जिसमें जख्म न दिख रहा हो और दर्द या सूजन की स्थिति है तो उसका समय पर इलाज कराना चाहिए। इलाज के अभाव में रोजमर्रा के काम पर भी असर होने लगता है। वॉर्मअप जरूरी : जोड़ दो हड्डियों को जोड़ते हैं जबकि लिगामेंट उसे मजबूती देते हैं। चोट लगने पर लिगामेंट डैमेज होने से व्यक्ति मूवमेंट नहीं कर पाता। ऐसे में अचानक कोई भारी वस्तु उठाने, हैवी वर्कआउट करने या खेल के मैदान पर जाने से पहले 8—10 मिनट वॉर्मअप जरूर करें। ये वर्कआउट, एक्सरसाइज, काम या खेल किस तरह का है, इस पर निर्भर करते हैं। वॉर्मअप मुख्य रूप से ‘नेक टू टो’ फॉर्मूले के अनुसार करते हैं जिसमें स्ट्रेचिंग के साथ हल्की जंपिंग-रनिंग करते हैं। इससे मांसपेशियों की मजबूती व शारीरिक क्षमता बढ़ती है। स्पोट्र्स इंजरी को नजरअंदाज करने से खिलाड़ी के खेलने की क्षमता कम होती है जबकि सामान्य व्यक्ति का जीवन मुश्किल हो जाता है। लक्षण: किसी भी तरह की स्पोट्र्स इंजरी में प्रभावित हिस्से पर सूजन, दर्द और त्वचा का रंग लाल या नीला हो जाता है। इसके साथ गहरी चोट में उस हिस्से में सुन्नपन, हाथ-पैरों के मूवमेंट में तकलीफ होना जैसी समस्या होती है। कुछ स्पोट्र्स इंजरी के बाद कोई तकलीफ नहीं होती लेकिन अचानक क्रैंप आने लगता है। ऐसे में सतर्क रहना जरूरी है क्योंकि ये क्रैंप किसी भी वक्त मुश्किल में डाल सकता है। इंजरी का ग्रेड पता करने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई व गंभीर स्थिति में मांसपेशी का कलर डॉप्लर टैस्ट भी करते हैं। घुटने, कंधे व टखने अधिक प्रभावित: स्पोट्र्स इंजरी में सबसे अधिक चोट घुटने, कंधे और टखने में लगती है। जिन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। चाहे वह मामूली हो या गंभीर। इसका समय पर इलाज जरूरी है। 10—15 फीसदी मामलों में पीडि़त चोट का समय पर सही इलाज नहीं लेते हैं। यदि हड्य़िों-जोड़ों में दर्द या सूजन की दिक्कत 3—4 दिन से है तो लापरवाही न बरतें, विशेषज्ञ को दिखाएं। ऑर्थोयोग व फिजियो थैरेपी मददगार: स्पोट्र्स इंजरी के इलाज में ऑर्थो योग और फिजियोथैरेपी फायदेमंद है। ऑर्थो योग से शरीर को लचीला बनाने के साथ जोड़ों को मजबूत बनाते हैं ताकि हल्की-फुल्की चोट या मोच में कोशिका को नुकसान न हो। साथ ही प्राणायाम से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाते हैं। फिजियोथैरेपिस्ट आइसपैक या आईसथैरेपी, टैपिंग के साथ कई तरह की सिकाई और एक्सरसाइज की मदद से समस्या से राहत दिलाते हैं। ये बातें समझें: खेल या वर्कआउट के बाद खुद को कूल डाउन जरूर करें। वर्ना मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है। कोई भी खेल खेलने से पहले उसके नियम और तकनीक को अच्छी तरह से समझ लें।
की-होल सर्जरी: स्पोट्र्स इंजरी का इलाज दवा और एक्सरसाइज के साथ-साथ बैड रेस्ट होता है जिससे क्षतिग्रस्त हिस्से को रिपेयर होने का मौका मिल सके। गंभीर चोट के मामले में दर्द और सूजन से लंबे समय तक आराम न मिलने पर की-होल सर्जरी करते हैं जिसके बाद रोगी या खिलाड़ी पूरी तरह से ठीक हो जाता है। वे अपना हर काम या पंसदीदा खेल आसानी से खेल व कर सकता है। इस तकनीक में छोटे छेद के जरिए दूरबीन तकनीक की मदद से क्षतिग्रस्त कोशिका को रिपेयर कर पुरानी अवस्था में लाते हैं जिसे आथ्र्राेस्कोपी सर्जरी भी कहते हैं। दर्द-सूजन पर ध्यान दें: स्पोट्र्स इंजरी ऐसी चोट होती है जिसमें जख्म तो नहीं दिखता लेकिन अंदरूनी रूप से शरीर में असहनीय दर्द होता है। इसमें हड्डियां टूटने, मोच आने, अंग, मांसपेशी आदि का अपनी जगह से खिसकने व लिगामेंट के क्षतिग्रस्त होने जैसी समस्या होती है। स्पोट्र्स इंजरी सिर्फ खिलाडिय़ों को ही नहीं रोजमर्रा की जिंदगी में किसी को भी हो सकती है। इस इंजरी में जोड़ या शरीर के किसी अन्य हिस्से के लिगामेंट या कोशिका में चोट लग जाती है जिससे पीडि़त को या खिलाड़ी को चलने-फिरने में परेशानी होने के साथ असहनीय दर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में हर ऐसी चोट जिसमें जख्म न दिख रहा हो और दर्द या सूजन की स्थिति है तो उसका समय पर इलाज कराना चाहिए। इलाज के अभाव में रोजमर्रा के काम पर भी असर होने लगता है। वॉर्मअप जरूरी : जोड़ दो हड्डियों को जोड़ते हैं जबकि लिगामेंट उसे मजबूती देते हैं। चोट लगने पर लिगामेंट डैमेज होने से व्यक्ति मूवमेंट नहीं कर पाता। ऐसे में अचानक कोई भारी वस्तु उठाने, हैवी वर्कआउट करने या खेल के मैदान पर जाने से पहले 8—10 मिनट वॉर्मअप जरूर करें। ये वर्कआउट, एक्सरसाइज, काम या खेल किस तरह का है, इस पर निर्भर करते हैं। वॉर्मअप मुख्य रूप से ‘नेक टू टो’ फॉर्मूले के अनुसार करते हैं जिसमें स्ट्रेचिंग के साथ हल्की जंपिंग-रनिंग करते हैं। इससे मांसपेशियों की मजबूती व शारीरिक क्षमता बढ़ती है। स्पोट्र्स इंजरी को नजरअंदाज करने से खिलाड़ी के खेलने की क्षमता कम होती है जबकि सामान्य व्यक्ति का जीवन मुश्किल हो जाता है। लक्षण: किसी भी तरह की स्पोट्र्स इंजरी में प्रभावित हिस्से पर सूजन, दर्द और त्वचा का रंग लाल या नीला हो जाता है। इसके साथ गहरी चोट में उस हिस्से में सुन्नपन, हाथ-पैरों के मूवमेंट में तकलीफ होना जैसी समस्या होती है। कुछ स्पोट्र्स इंजरी के बाद कोई तकलीफ नहीं होती लेकिन अचानक क्रैंप आने लगता है। ऐसे में सतर्क रहना जरूरी है क्योंकि ये क्रैंप किसी भी वक्त मुश्किल में डाल सकता है। इंजरी का ग्रेड पता करने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई व गंभीर स्थिति में मांसपेशी का कलर डॉप्लर टैस्ट भी करते हैं। घुटने, कंधे व टखने अधिक प्रभावित: स्पोट्र्स इंजरी में सबसे अधिक चोट घुटने, कंधे और टखने में लगती है। जिन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। चाहे वह मामूली हो या गंभीर। इसका समय पर इलाज जरूरी है। 10—15 फीसदी मामलों में पीडि़त चोट का समय पर सही इलाज नहीं लेते हैं। यदि हड्य़िों-जोड़ों में दर्द या सूजन की दिक्कत 3—4 दिन से है तो लापरवाही न बरतें, विशेषज्ञ को दिखाएं। ऑर्थोयोग व फिजियो थैरेपी मददगार: स्पोट्र्स इंजरी के इलाज में ऑर्थो योग और फिजियोथैरेपी फायदेमंद है। ऑर्थो योग से शरीर को लचीला बनाने के साथ जोड़ों को मजबूत बनाते हैं ताकि हल्की-फुल्की चोट या मोच में कोशिका को नुकसान न हो। साथ ही प्राणायाम से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाते हैं। फिजियोथैरेपिस्ट आइसपैक या आईसथैरेपी, टैपिंग के साथ कई तरह की सिकाई और एक्सरसाइज की मदद से समस्या से राहत दिलाते हैं। ये बातें समझें: खेल या वर्कआउट के बाद खुद को कूल डाउन जरूर करें। वर्ना मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है। कोई भी खेल खेलने से पहले उसके नियम और तकनीक को अच्छी तरह से समझ लें।