सबसे पहले समतल जमीन पर चटार्इ बिछाकर आलथी पालथी मारकर बैठ जाएं। अब अपने सिर व गर्दन को एक सीध में रखें।अपनी रीढ़ की हड्डी को भी सीधा रखें। अपने दोनाें कंधाें काे ढीला छोड़कर उन्हें एक सीध में रखें। फिर अपनी सांस को बिना जोर लगाए अंदर की आेर ले फिर बाहर की अाेर छोड़ें। अब अपनी हथेलियाें को अपनी पलथी के उपर रखें। अब अपना पूरा ध्यान अपनी श्वास क्रिया पर लगाते हुए सांस लम्बी आैर गहरी लें।
लाभ
सकारात्मक सोच बढ़ें – सुखासन के नियमित अभ्यास से हम अपनी स्मरणशक्ति व सकारात्मक सोच बढ़ा सकते हैं। जब हमारी साेच सकारात्मक बन जाती है तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आने लगते हैं। अाैर इसके साथ-साथ ही इसके अभ्यास से मन अाैर मस्तिष्क को शांति मिलती है।मन अाैर मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है। मन की चंचलता कम होती है। गुस्से पर काबू रहता है।
मेरूदंड लचीला – इस अासन के नियमित रूप से अभ्यास करने से मेरूदंड लचीला आैर मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है अाैर उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है।
कब करें
सुबह शाम खाली पेट यह आसन किया जा सकता है। यह आसन नियमित रूप से 5 से 10 बार करें। चेतावनी – घुटनाें व रीढ़ की हड्डी में दर्द से परेशान व्यक्ति को यह आसन सुविधाजनक लगने पर ही करना चाहिए।