कान और गले के रोगों में लेते स्वाब सैंपलिंग
स्वाब नमूने को भी लैब में टैस्ट कर बीमारी का पता लगाया जाता है। यह कल्चर टैस्ट का हिस्सा है जिसे बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन होने पर कराने की सलाह दी जाती है।
फोड़े-फुंसी होने पर इस तरह की सैंपलिंग की जाती है
यूरिन, स्टूल और ब्लड सैंपल की तरह स्वाब नमूने को भी लैब में टैस्ट कर बीमारी का पता लगाया जाता है। यह कल्चर टैस्ट का हिस्सा है जिसे बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन होने पर कराने की सलाह दी जाती है। शरीर के ऐसे हिस्से जहां से सैंपल को आसानी से नहीं लिया जा सकता है (गला और कान) वहां स्वाब सैंपलिंग की जाती है। जैसे गले में टॉन्सिल होने पर नमूना लेने के लिए एक स्टिक पर फिक्स स्टेरेलाइज्ड रूई के जरिए मुंह से सलाइवा लेते हैं। कान बहने, दर्द होने या शरीर में फोड़े-फुंसी होने पर इस तरह की सैंपलिंग की जाती है।
ध्यान रखें
इस टैस्ट को करने के लिए हमेशा स्टेरेलाइज्ड स्वाब का इस्तेमाल जरूरी है ताकि बाहरी इंफेक्शन से रिपोर्ट प्रभावित न हो सके।
टैस्ट के 1-2 घंटे पहले मरीज को एंटीसेप्टिक माउथवाश या दवा लेने की मनाही होती है। इससे रिपोर्ट प्रभावित हो सकती है।
रिपोर्ट से तय होती दवा
सैंपल में बैक्टीरिया या फंगस को लैब में विकसित कर बायोकेमिकल टैस्ट से पता लगाते हैं कि बैक्टीरिया कौनसा है। इसके बाद एंटी-माइक्रोबियल टैस्ट कर यह जानते हैं कि कौनसी दवा या कंपाउंड बैक्टीरिया को नष्ट करने में सक्षम है। रिपोर्ट में दवा की जानकारी दी जाती है। जिसके आधार पर डॉक्टर लक्षणानुसार दवा की डोज तय करते हैं।
डॉ. नित्या व्यास, माइक्रोबायोलॉजिस्ट
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