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बच्चों में थैरेपी से दूर कर सकते हैं यूरिन लीकेज की समस्या

locationजयपुरPublished: Mar 21, 2018 12:09:44 am

बच्चों में यूरिन ऑब्सट्रक्शन (डिसफंक्शनल वॉयडिंग) की समस्या भी अधिक पाई जाती है जिसे पेशाब में रुकावट भी कहते हैं।

यूरिन लीकेज की समस्या

बच्चों में यूरिन ऑब्सट्रक्शन (डिसफंक्शनल वॉयडिंग) की समस्या भी अधिक पाई जाती है जिसे पेशाब में रुकावट भी कहते हैं। यूरिन में रूकावट होने की वजह से बच्चे को यूरिन तो लगती है लेकिन जब करने जाएगा तब यूरिन नहीं रिलीज होगी। ब्लैडर और यूरेटर में यूरिन भरा होने से यह धीरे-धीरे लीक होती है।

यूरिन लीकेज की समस्या से ग्रसित बच्चे को संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। इसका बड़ा कारण होता है ब्रेन और ब्लैडर के बीच कॉर्डिनेशन का सही न होना। ब्रेन और ब्लैडर आपस में कनेक्ट होते हैं। बच्चे को जब पेशाब लगती है तो ब्लैडर ब्रेन को सिग्नल करता है। डिसफंक्शनल वॉयडिंग में ब्लैडर ब्रेन को सिग्नल नहीं दे पाता है जिस वजह से बच्चा यूरिन नहीं कर पाता है और लिकेज की समस्या हो जाती है। इस समस्या के निदान के लिए अलग-अलग थैरेपी दी जाती है जिससे समस्या ठीक होती है।

बायो फीडबैक
डिसफंक्शन वॉयडिंग लिकेज की समस्या से ग्रसित बच्चे को राहत दिलाने के लिए बायो फीडबैक टेक्नीक का इस्तेमाल करते हैं। इसमें बच्चे को कंप्यूटर पर ब्रेन-ब्लैडर और यूरिन को रिलीज करने की पूरी प्रक्रिया को दिखाया जाता है। इसके बाद बच्चे को वही प्रक्रिया स्क्रीन पर देखते हुए दोहराने के लिए कहते हैं। बच्चा जब प्रक्रिया को दोहराता है तो वह आसानी से यूरिन पास करता है जिसके बाद समस्या का काफी हद तक निदान हो जाता है।

2-4 दिन करते भर्ती
इन थैरेपी से बच्चे की यूरिन संबंधी समस्या को दूर करने के लिए उसे दो से चार दिन तक अस्पताल में भर्ती कर के रखा जाता है जिससे वे सभी चीजों को आसानी से सीख सके। छोटे बच्चों में उनके माता-पिता को भी इस दौरान काफी ध्यान रखना होता है।

बोटॉक्स इंजेक्शन
कुछ बच्चों में ब्लैडर की मसल्स बहुत कठोर होती हैं जिससे यूरिन पास होने में तकलीफ होती है। ऐसे में दूरबीन की मदद से बच्चे के ब्लैडर में बोटॉक्स इंजेक्शन लगाते हैं जिससे ब्लैडर की मसल्स सामान्य हो जाती हैं और बच्चे को यूरिन पास होने लगता है।

न्यूरो मॉडयुलेशन
ब्रेन व ब्लैडर के बीच कॉर्डिनेशन बनाने के लिए न्यूरो मॉडयुलेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसमें पल्स जनरेटर की मदद से ब्लैडर और ब्रेन को जोडऩे वाली नर्व को स्टीमुलेट करते हैं। जिससे बच्चे के ब्लैडर और ब्रेन के बीच सिग्नल काम करने लगता है। बच्चे के ब्लैडर में जब पेशाब भरेगा तो ब्लैडर ब्रेन को यूरिन रिलीज करने का सिग्नल देगा। इस तरह की तकलीफ ८-१० फीसदी बच्चों में होती है जो इस थैरेपी से ठीक हो जाती है। डॉ. एम.एस अंसारी, पीडियाट्रिक यूरोलॉजिस्ट, पीजीआई लखनऊ

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