लक्षण : यह रोग 25-40 वर्ष की आयु में ज्यादा होता है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में यह समस्या अधिक होती है। इसमें रोगी को अचानक तेजदर्द की अनुभूति होती है जो चेहरे के एक सिरे से शुरू होकर दूसरे सिरे पर समाप्त होता है। इस दर्द में चेहरे की सारी मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं और आंखों से लगातार आंसू व मुंह से लार निकलना चालू हो जाती है। यह दर्द एक निश्चित अवधि के अंतराल में बार-बार होता है। इस दर्द की शुरुआत खाना खाते हुए, बोलते समय या ठंडी वस्तु के स्पर्श के साथ होती है व धीरे-धीरे इसकी तीव्रता असहनीय हो जाती है।
कारण : इस रोग के प्रमुख कारण ट्राइजेमिनल नाड़ी में होने वाले ट्यूमर, न्यूरोमा, एपिडर्मोइड आदि गांठें हो सकती हैं। ट्राइजेमिनल नाड़ी के पास से गुजरने वाली खून की धमनी कभी-कभी लूप (घुमावादार) का आकार ले लेती है। इस धमनी में होने वाली धडक़न से बार-बार इस नस पर चोट लगती है जिससे चेहरे में तेजदर्द के साथ कभी-कभी मरीज बेहोश भी हो जाता है।
इलाज : दवाओं व सर्जरी दोनों से इसका इलाज संभव है। शुरुआती दौर में उपचार दवा से ही किया जाता है। कार्बामेजिपिन दवा इस रोग में कारगर है। यदि मरीज को इस दवा से आराम नहीं मिलता तो उसका उपचार सर्जरी होती है। समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सर्जरी की पद्धतियां काम में ली गई हैं जैसे राइजोटॉमी, ग्लीसरोल राइजोटॉमी, बैलून राइजोटॉमी व रेडियो फ्रिक्वेंसी राइजोटॉमी आदि। मरीज पर सभी तरह की सर्जरी का प्रभाव एक निश्चित समय तक रहता है और पुन: इस रोग के लक्षण सामने आने लगते हैं। 1976 में जनेटा नाम के न्यूरोसर्जन ने माइक्रोवैस्क्यूलर डीकंप्रेशन सर्जरी का अविष्कार किया जो अन्य सर्जरी की अपेक्षा ज्यादा कारगर है।
कभी-कभी चेहरे पर अन्य बीमारियों का भ्रम भी इस बीमारी से हो जाता है जैसे टोल्साहंट सिंड्रोम, रीडर सिंड्रोम, ऐटिपिकल फेशियल पेन आदि।
जांच : यदि त्रिनाड़ी में कोई गांठ या धमनी का लूप दबाव डाल रहा होता है तो एमआरआई से इसका पता लगाया जा सकता है लेकिन कई रोगियों में इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं मिलता।