खून में लेड की अधिक मात्रा जानलेवा हो सकती है। कई बार लेड शरीर में प्रदूषित पानी और खाने के जरिए भी पहुंचता है और दिमागी रोगों का कारण बनता है। असल में बच्चों की इस तरह की आदतों के पीछे पीका सिंड्रोम जिम्मेदार होता है, जिसे अक्सर माता-पिता अनदेखा कर देते हैं। यह रोग बच्चों में ही नहीं बड़ों में भी पाया जाता है। जानते हैं इस रोग और उससे बचने के उपायों के बारे में।
कैसे आया यह सिन्ड्रोम?
यह शब्द लेटिन भाषा के शब्द ‘मैगपी’ से बना है जो कि एक ऐसे पक्षी की ओर संकेत करता है जिसे बहुत भूख लगती है और वह भूख में कुछ भी खा लेता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति मिट्टी, क्ले, पेंसिल, पेन, चॉक, प्लास्टर, लोहे की पिन, ग्लू, सिगरेट के बट्स, बाल, नाखून, बटन, पेपर, रेत, टूथपेस्ट, साबुन या रोजमर्रा के काम आने वाली चीजों को खा लेता है। इस तरह चबाने की शुरुआत गलत आदत से होती है और धीरे-धीरे यह लत में बदल जाती है। आगे चलकर यही लत ‘पिका सिन्ड्रोम’ का रूप ले लेती है।
क्या होता है ‘पिका सिन्ड्रोम’ में?
यह सिन्ड्रोम बच्चों में दो से तीन साल की उम्र में शुरू होता है। ऐसे में बच्चा जबड़ों में खुजली के कारण कोई भी चीज मुंह में डालना शुरू कर देता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संगीता माने के अनुसार अमूमन बच्चों में चॉक और पेंसिल चबाना एक सामान्य आदत होती है। पढ़ाई के तनाव में उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब चॉक या पेंसिल उनके मुंह में चली गई। यही आदत आगे चलकर नाखून या उसके आसपास की चमड़ी को चबाने की आदत में तब्दील हो सकती है जो ताउम्र बनी रहती है।
क्यों पड़ जाती है चबाने की आदत?
नाखून चबाना एक सामान्य आदत है जो अक्सर तब देखने को मिलती है, जब बच्चा या वयस्क व्यक्ति तनाव में होता है। तनाव में सोचते रहने से जो कुछ सामने होता है व्यक्ति अनजाने में उसे मुंह में डाल लेता है। अक्सर लोग तनाव में ज्यादा खाते हैं तो उसके पीछे भी यही मनोवैज्ञानिक कारण होता है कि वे अपने दिमाग को थोड़ा भटकाना चाहते हैं। जब खाने की कोई भी चीज सामने नहीं होती तो अक्सर इस सिन्ड्रोम से पीडि़त लोग नाखून या स्टेशनरी की चीजों को मुंह में डालने लगते हैं। शरीर में आयरन, जिंक या कैल्शियम की कमी से ऐसी चीजें खाने का मन करता है। ये आदत कुछ दिनों या 2-4 महीनों में खुद ही छूट जाती है। लेकिन लंबे समय तक बनी रहे तो यह साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर हो सकता है।
क्या हैं अनचाहा चबाने के नुकसान ?
मिट्टी, प्लास्टर ऑफ पेरिस या ग्रेफाइट वाली पेंसिल जहां पेट,सांस और दिमागी बीमारियों का कारण बन सकती हैं, वहीं नाखूनों के कीटाणु पेट में जाकर संक्रमण का कारण बन जाते हैं। कठोर व खुरदरे पदार्थ से दांतों व मसूड़ों में चोट लग सकती है। इसके अलावा पेट में कीड़े, सिरदर्द और चिड़चिड़ेपन की समस्या व बच्चों की वृद्धि भी रुक सकती है। प्लास्टिक, लोहे और भारी धातुओं से बनी चीजों को मुंह में लेने से लेड पॉइजनिंग, एनीमिया और ऑटिज्म भी हो सकता है। गर्भवती महिलाओं और मिर्गी के दौरे से पीडि़त व्यक्तियों को ‘पिका सिन्ड्रोम’ से बचने के लिए डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
बचने के उपाय
बच्चों को तर्क व उदाहरण देकर अच्छी तरह से समझाएं कि मुंह में लेने वाली चीजें कौनसी हैं व किन चीजों से दूर रहें।
घर में मौजूद ऐसी तमाम चीजों को फेंक दें या बंद जगह में रखें जिन्हें बच्चे मुंह में लेने के लिए ललचाते हैं।
बच्चे आपकी न सुनें तो किसी विशेषज्ञ, डॉक्टर या समझदार व्यक्ति के माध्यम से उन्हें समझाने की कोशिश करें।
अपने डेंटिस्ट से सलाह लें और जरूरत पड़े तो बच्चों के लिए मॉउथगार्ड बनवाएं।
वयस्कों को खुद पर कंट्रोल रखना चाहिए व नाखून चबाने की इच्छा होने पर गाजर जैसी कठोर और फायदेमंद चीजें चबानी चाहिए।