यह है प्रक्रिया
शांत भाव से आरामदायक मुद्रा में बैठकर साधक को सांसों के उतार व चढ़ाव पर ध्यान केंद्रित करना होता है। धीरे-धीरे बंद आंखों से अपनी ही सांसों की आवाजाही को जागृत भाव से महसूस करना होता है। आमतौर पर हम अधिकतर क्रियाओं को इसलिए कर देते हैं क्योंकि हमें वैसा करने की आदत पड़ चुकी होती है। यह साधना श्वसन जैसी महत्वपूर्ण क्रिया को जानने, समझने व महसूस करने की प्रक्रिया से प्रारंभ होती है और साधना के गहन स्तरों तक लेकर जाती है।
शांत भाव से आरामदायक मुद्रा में बैठकर साधक को सांसों के उतार व चढ़ाव पर ध्यान केंद्रित करना होता है। धीरे-धीरे बंद आंखों से अपनी ही सांसों की आवाजाही को जागृत भाव से महसूस करना होता है। आमतौर पर हम अधिकतर क्रियाओं को इसलिए कर देते हैं क्योंकि हमें वैसा करने की आदत पड़ चुकी होती है। यह साधना श्वसन जैसी महत्वपूर्ण क्रिया को जानने, समझने व महसूस करने की प्रक्रिया से प्रारंभ होती है और साधना के गहन स्तरों तक लेकर जाती है।
अहंकार होगा दूर
विपश्यना से अहंकार को दूर करने के बाद ही खुद को जानने का रास्ता खुलता है क्योंकि स्वयं को जानने के लिए सांसारिक उपलब्धियों के अहंकार की परत को मन से उखाड़ कर फेंक देना होता है।
विपश्यना से अहंकार को दूर करने के बाद ही खुद को जानने का रास्ता खुलता है क्योंकि स्वयं को जानने के लिए सांसारिक उपलब्धियों के अहंकार की परत को मन से उखाड़ कर फेंक देना होता है।
ऐसे करें साधना
विपश्यना की साधना को प्रशिक्षित गुरु के निर्देशन में ही अधिक प्रभावोत्पादक माना गया है। विपश्यना की साधना के लिए अनुकूल स्थल, आरामदायक कपड़े और व्यक्ति का संकल्प सबसे आवश्यक माने गए हैं। व्यक्ति जिस मुद्रा में अपने को अधिक आरामदायक स्थिति में महसूस करे, उसी मुद्रा या आसन में बैठे। स्थान ऐसा हो, जहां बाहरी शोर उसकी एकाग्रता को भंग नहीं कर सके। लंबे समय तक साधना का संकल्प मन को कई बार बेचैन करता है इसलिए शुरुआत में कम समय के लिए साधना शुरू करें और धीर-धीरे उसी मुद्रा में अवधि को बढ़ाएं।
विपश्यना की साधना को प्रशिक्षित गुरु के निर्देशन में ही अधिक प्रभावोत्पादक माना गया है। विपश्यना की साधना के लिए अनुकूल स्थल, आरामदायक कपड़े और व्यक्ति का संकल्प सबसे आवश्यक माने गए हैं। व्यक्ति जिस मुद्रा में अपने को अधिक आरामदायक स्थिति में महसूस करे, उसी मुद्रा या आसन में बैठे। स्थान ऐसा हो, जहां बाहरी शोर उसकी एकाग्रता को भंग नहीं कर सके। लंबे समय तक साधना का संकल्प मन को कई बार बेचैन करता है इसलिए शुरुआत में कम समय के लिए साधना शुरू करें और धीर-धीरे उसी मुद्रा में अवधि को बढ़ाएं।