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महिलाएं पैरों के रोगों को ना करें अनदेखा

locationजयपुरPublished: Apr 15, 2018 04:47:09 am

पैरों पर पडऩे वाले काले निशान को अक्सर लोग त्वचा संबंधी मामूली समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं पर ऐसा करना उचित नहीं है।

महिलाएं पैरों के रोगों को ना करें अनदेखा

पैरों पर पडऩे वाले काले निशान को अक्सर लोग त्वचा संबंधी मामूली समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं पर ऐसा करना उचित नहीं है। यह वेन्स संबंधी गंभीर समस्या भी हो सकती है। इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफीसियंसी या सीवीआइ कहा जाता है। अगर आपके पैरों के निचले हिस्से पर काले रंग के चकत्तेदार निशान हैं, पैरों की त्वचा का रंग बाकी शरीर की त्वचा के रंग से ज्यादा गहरा हो।

आपको एक घंटे से ज्यादा देर तक खड़े रहने में परेशानी होती है। चलने से पैरों में सूजन आ जाती है। थोड़ा चलने के बाद खिंचाव या बहुत ज्यादा थकान महसूस होती है तो ऐसे निशान को अनदेखा न करें, क्योंकि यह वेन्स से जुड़ी गंभीर समस्या हो सकती है। जिसे मेडिकल भाषा में क्रोनिक वेनस इन्सफीसियंसी यानी सीवीआई कहते हैं।

स्त्रियों को हो सकती है समस्या
वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन 30 वर्ष से अधिक उम्र वाली स्त्रियों में ज्यादातर सीवीआई की समस्या देखने को मिलती है। ज्यादातर स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी केबाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इसे दूर करने के लिए वे मालिश और अन्य घरेलू उपचारों का सहारा लेती हैं। इससे उन्हें थोड़ी देर के लिए दर्द से राहत जरूर मिल जाती है, लेकिन समस्या का कोई स्थायी हल नहीं मिल पाता।

जीवनशैली है जिम्मेदार
आधुनिक जीवनशैली की वजह से सीवीसी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता की वजह से लोगों की शारीरिक गतिविधियां दिनों-दिन कम होती जा रही हैं। डेस्क जॉब करने वाले लोगों में इस बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा ट्रैफिक पुलिस, शेफ और ब्यूटी सलून में कार्यरत लोगों को भी यह समस्या हो सकती है, क्योंकि इन्हें लगातार खड़े होकर काम करना पड़ता है। इससे अशुद्ध रक्त फेफड़ों तक ऊपर पहुंचने के बजाय पैरों की रक्त वाहिका नलियों में ही जमा होने लगता है। इसी वजह से काले निशान या दर्द की समस्या होती है।

इसलिए होता है ऐसा
शरीर के अन्य अंगों की तरह पैरों को भी आक्सीजन की जरूरत पड़ती है। यह आक्सीजन हार्ट की आर्टरीज में प्रवाहित शुद्ध रक्त के जरिए पहुंचाई जाती है। पैरों को ऑक्सीजन देने के बाद यह आक्सीजन रहित अशुद्ध खून वेंस के जरिए वापस पैरों से ऊपर फेफड़े की तरफ शुद्धीकरण के लिए पहुंचाया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ये नसें पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बनाती हैं। किसी कारण से अगर इनकी कार्यप्रणाली शिथिल हो जाती है तो पैरों का ड्रेनेज सिस्टम चरमरा जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ऑक्सीजन रहित अशुद्ध खून ऊपर चढक़र फेफड़े की ओर जाने की बजाय पैरों केनिचले हिस्से में जमा होना शुरू हो जाता है।

नजर आने लगते हैं लक्षण
इसी वजह से पैरों में सूजन और काले निशानों की समस्या शुरू हो जाती है। अगर समय रहते इनका समुचित इलाज नहीं कराया गया तो ये काले निशान गहरे होकर धीरे.धीरे ज़ख़्म में परिवर्तित हो जाते हैं। जिन लोगों को डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी डीवीटी की समस्या होती है, उनके पैरों की नसों में खून के कतरे जमा हो जाते हैं और वे उसकी दीवारों को नष्ट कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि शिराओं के जरिए अशुद्ध रक्त के ऊपर चढऩे की प्रक्रिया बुरी तरह से बाधित हो जाती है, जो सीवीआइ को जन्म देती है।

एक्सरसाइज की कमी भी इस बीमारी की प्रमुख वजह है। शारीरिक निश्क्रियता की स्थिति में पैरों की मांसपेशियों द्वारा निर्मित पंप जो अशुद्ध रक्त को ऊपर चढ़ाने में मदद करता है, वह कमजोर पड़ जाता है। कुछ लोगों की नसों में स्थित वाल्व जन्मजात रूप से ही ठीक से विकसित नहीं हो पाते, ऐसे मरीजों में सीवीआई के लक्षण कम उम्र में ही नजर आने लगते हैं।

यह है उपचार
अगर पैरों में काले चकत्तेदार निशान दिखाई दें तो इसे त्वचा रोग समझने की भूल न करें। ऐसी स्थिति में बिना देर किए किसी वेस्क्युलर सर्जन से सलाह लें। उपचार के दौरान सबसे पहले इन निशानों का असली कारण जानने की कोशिश की जाती है। इसके लिए वेन डॉप्लर स्टडी, एमआर वेनोग्राम व कभी-कभी एंजियोग्राफी का सहारा लिया जाता है। खून की विशेष जांच कर यह पता लगाना पड़ता है कि खून जमने की प्रक्रिया दोषपूर्ण तो नहीं है। इन विशेष जांचों के आधार पर ही सीवीआई के इलाज की सही दिशा निर्धारण होता है।

ज्यादातर मरीजों में दवा और विशेष व्यायाम की ही जरूरत होती है। गंभीर स्थिति होने पर सर्जरी भी करानी पड़ सकती है। वेन वाल्वुलोप्लास्टी, एग्जेलरी वेन ट्रांस्फर या वेन्स बाइपास सर्जरी जैसी आधुनिकतम तकनीक की मदद से इस बीमारी का उपचार संभव है। वेन बाइपास सर्जरी आजकल लोकप्रिय हो रही है। इसके लिए कभी-कभी विदेशों से आयातित कृत्रिम वेन्स का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी इंडोस्कोपिक वेन सर्जरी या फिर लेजर सर्जरी का भी सहारा लेना पड़ता है।

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