यह वाकया 40 के दशक का है, उस वक्त चित्रा की उम्र तकरीबन 6 वर्ष रही होंगी। चित्रा अपने परिवार के साथ हैदराबाद में रहती थीं। उन दिनों चित्रा को अफसरून के नाम से पुकारा जाता था। वह पिता के साथ हैदराबाद शहर घूमने निकली थीं। घर लौटते वक्त रास्ते में एक रेलवे स्टेशन पड़ता है। पिता चाहते थे कि रेल की पटरी को पार करके जल्दी घर पहुंच जाएं। वह पहले भी वहां से इसी तरह गुजर चुके थे। बेटी और पिता रेलवे स्टेशन से गुजर ही रहे थे कि बेटी पिता से थोड़ा पीछे रह गई। पीछे छूटने के बाद बेटी चित्रा का पैर फिसल गया और वह पटरी के बीच में गिर गई।
चित्रा ने पिता को गिरने के बाद कई आवाज लगाई और जब तक पिता पीछे मुड़कर देखते तब तक ट्रेन कुछ ही दूरी पर पहुंच चुकी थी। कुछ भी करने का समय निकल चुका था। पिता ने देखा की बेटी का हाथ पटरी पर है तो उन्होंने जल्दी से बेटी का हाथ लिया और पटरी के बीच के गड्ढे में धकेल दिया। बेटी को ट्रेन के नीचे धकेल पिता बिलख-बिलख कर रोने लगे और भगवान से बेटी की सलामती की भीख मांगने लगे। ट्रेन चित्रा के ऊपर से गुजरी तो वह गड्ढे में दुबकी हुई पड़ी थीं। बेटी को सही सलामत देख पिता ने उन्हें सीने से लगा लिया और रोते हुए घर ले आए।