बॉलीवुड

सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों को बचाने के लिए अभियान से जुड़े अली फजल

अधिकांश सिंगल-स्क्रीन थिएटरों को अब मल्टीप्लेक्स में परिवर्तित कर दिया गया है

Oct 04, 2018 / 11:20 am

Mahendra Yadav

Ali fazal

भारत भर में सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल को पिछले कुछ दशकों में एक बड़ा झटका लगा है। अधिकांश सिंगल-स्क्रीन थिएटरों को अब मल्टीप्लेक्स में परिवर्तित कर दिया गया है या कॉर्पोरेट हाउस या मॉल में समायोजित करने के लिए गिरा दिया गया है। हालांकि अधिकांश सिनेमा प्रेमियों, खास तौर पर युवाओं द्वारा इस बदलाव का स्वागत किया गया है, लेकिन पुरानी पीढ़ी के कई दर्शक जो सिंगल स्क्रीन थिएटर में फिल्में देखते हुए बड़े हुए हैं, उनके लिए इन पुराने अड्डों को अलविदा कहना बेहद मुश्किल रहा है।

अभियान से जुड़े अली फजल:
ऐसे में अभिनेता अली फजल ‘सेव अ सिंगल स्क्रीन थिएटर’ अभियान से जुड़ गए हैं। बता दें कि हाल में उन्होंने तिग्मांशु धूलिया की फिल्म ‘मिलन टॉकीज’ की शूटिंग पूरी की है। इस फिल्म की कहानी एकल स्क्रीन थिएटर के पतन के विषय पर ही आधारित है। ऐसे में अली फजल अपने रील लाइफ कैरेक्टर से प्रेरणा लेते हुए भारत भर में एकल स्क्रीन सिनेमाघरों को बचाने के लिए समर्थन कर रहे हैं।

 

सिनेमा को आसान पहुंच मिली:
जब अली से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैं और कुछ और लोग उस वर्ष लखनऊ के एक प्रतिष्ठित थिएटर में एक अंग्रेजी फिल्म देखने वाले आखिरी लोग थे। मुझे उसके वे आखिरी दिन याद हैं जब वो मौत से मुकाबला कर रहा था। प्राचीन समय से वह एक बड़ा सिनेमाहॉल रहा है। इसी प्रकार कई और सिंगल स्क्रीनों को भी गिरा दिया गया था। यह ऐसा ही है, जैसे हमने फिल्म कैमरा और फिल्म प्रयोगशालाएं खो दीं थी और डिजिटल कैमरों पर शिफ्ट हो गए थे तो दुनिया बेहतर हो गई थी, सिनेमा को आसान पहुंच मिली। आज हम धीरे-धीरे दोबारा उस ओर जा रहे हैं (हॉलीवुड में)। नेटफ्लिक्स और अमेजॉन और अन्य स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म के ज़माने में, मशाल जलाए रखने के लिए सिनेमा को अपना आकर्षण बनाए रखना होगा। मल्टीप्लेक्स मालिकों को पहल करने की जरूरत है। पौधे को काटना है तो पेड़ उगाएं। लेकिन यह एक धीमी प्रक्रिया हो सकती है।’

 

सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों को बचाने के अभियान से जुड़े अली फजल

पुराने सिनेमाहॉल में फिल्में देखने का अलग ही मजा:
अली अपने गृह नगर लखनऊ और देहरादून में सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉलों में फिल्में देखते हुए बड़े हुए। पुराने सिनेमाहॉल में फिल्में देखने का अपना अलग ही मज़ा है, जिसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। हालांकि कई हॉलों की सीटें आरामदायक नहीं हैं, मगर फिल्म देखने का अनुभव अमूल्य होता है। अली सिंगल स्क्रीन में फिल्मों को देखने के अपने पूरे अनुभव को आज भी याद करते हैं। वह इन्हें बचाने के बारे में कुछ करना चाहते थे, खासकर आने वाली पीढ़ी को वैसा ही मजेदार अनुभव देने के लिए। उन्होंने लखनऊ में कुछ संगठनों के साथ कुछ याचिकाएं फाइल करने में मदद की है जो इसी मुद्दे सुरक्षा पर काम कर रहे हैं।

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