लेकिन अमिताभ ने हार नहीं मानी। उन्हें राजेश खन्ना के साथ फिल्म आनंद के लिए चुना गया। इस फिल्म में उन्हें बाबू मोशाई के किरदार से पहचान और प्रशंसा दोनों मिलीं। लेकिन अमिताभ अभी एक स्टारडम की तलाश में थे।
जो उन्हें साल 1975 में ऐतहासिक फिल्म शोले से मिला। उनकी अदाकारी और यारानें पर दर्शकों ने बहुत तालियां बजाई। और आखिर में उनकी मौत दर्शकों के इमोशन आंसू बनकर निकले। और यह लैंडमार्क फिल्म बनकर उभरी। जिसने उनके करियर को नई उड़ान दी।
उनके स्टारडम की खनक भारत समेत विश्व भर में सुनाई दी। दुनिया में आज भी उनके लाखों चाहने वाले बसते हैं। अफगानिस्तान इससे अछूता नहीं रहा। 1992 में आई फिल्म “खुदा गवाह” कि शूटिंग अफगानिस्तान के ‘मजार ए शरीफ’ में हुई थी। 2013 में बिग बी ने एक इंटरव्यू के दौरान इस फिल्म की शूटिंग का अनुभव शेयर किया। अमिताभ बच्चन ने बताया कि सोवियत संघ ने कुछ समय पहले ही अफगानिस्तान की कमान नजीबुल्लाह अहमदजई को सौंपी थी। जो हिंदी सिनेमा और अमिताभ बच्चन के बड़े प्रशंसक रहे हैं। शूटिंग के दौरान वह अमिताभ बच्चन से मिले और उन्हें शाही सम्मान से नवाजा भी था।
अफगानिस्तान उस समय आंतरिक ग्रह युद्ध में उलझा हुआ था। अफगान सरकार का मुजाहीदीनों के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। ऐसे में अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार ने अपनी आधी एयरफोर्स को अमिताभ बच्चन और दूसरे कलाकारों की सिक्योरिटी में लगा दी।
अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत सहायदा मोहम्मद अब्दाली ने बताया था कि अफगानी जमीन पर अमिताभ बच्चन के लाखों चाहने वाले हैं, इतना ही नहीं अफगानिस्तान के उस समय के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की बेटी ने अनुरोध किया था कि वह एक दिन के लिए मुजाहिदीन से लड़ाई रोकने पर बात करें ताकि शूटिंग के दौरान किसी तरह की परेशानी ना हो।
अफगानिस्तानी सरकार की सुरक्षा के इंतजाम के चलते बिना किसी बाधा के फिल्म खुदा गवाह की शूटिंग हो सकी। और खुदा गवाह ने अमिताभ के करियर को एक और नई दिशा प्रदान की।