लखनऊ में 19 मार्च, 1943 को जन्मे योगेश गौड़ ने अपने साहित्यिक गीतों मेे हिन्दी शब्दों को प्रधानता दी। उनके गीतों की सहजता और गहराई सुनने वालों को मोह लेती है। वे 1962 की फिल्म ‘सखी रॉबिन’ से सुर्खियों में आए। इसमें मन्ना डे का गाया ‘तुम जो आओ तो प्यार आ जाए’ अपने जमाने में काफी लोकप्रिय हुआ था। वे नब्बे के दशक तक फिल्मों में सक्रिय रहे। उन्होंने कुछ टीवी धारावाहिकों के लिए भी गीत लिखे।
सलिल चौधरी के साथ कई हिट गाने
योगेश ने यूं तो कई संगीतकारों के साथ काम किया, लेकिन सलिल चौधरी के साथ उन्होंने कई हिट गाने दिए। इनमें ‘आनंद’ के गानों के अलावा ‘न जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ’ (छोटी-सी बात), कई बार यूं भी देखा है (रजनीगंधा) और ‘रातों के साए’ (अन्नदाता) प्रमुख हैं। दूसरे संगीतकारों के लिए उन्होंने ‘रिमझिम गिरे सावन’ (मंजिल), न बोले तुम न मैंने कुछ कहा (बातों-बातों में) और ‘कैसे दिन जीवन में आए’ (अपने पराए) जैसे सदाबहार गीत लिखे।
मायूस थे मौजूदा दौर के संगीत से
योगेश ने कई साल से खुद को फिल्मों से अलग-थलग कर रखा था। उनका कहना था कि मौजूदा दौर का फिल्म संगीत उन्हें मायूस करता है। पहले एक-एक गीत पर गीतकार और संगीतकार कई दिन मेहनत करते थे, इसलिए उस समय के गीत आज भी सुने जाते हैं, जबकि आज के गानों में संगीत तथा शब्दावली का हिसाब-किताब उन्हें समझ नहीं आता।
लता मंगेशकर ने जताया शोक
योगेश के देहांत पर लता मंगेशकर ने, जिन्होंने उनके लिखे कई गीतों को स्वर दिया, शोक जताया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा-‘दिल को छूने वाले गीतों के रचयिता योगेश के स्वर्गवास के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। वे बहुत शांत और मधुर स्वभाव के इंसान थे। मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।’