केरल में हाल ही एक गर्भवती हथिनी को जिस तरह पटाखों से भरा फल खिलाकर मारा गया, वह दिल दहलाने वाला है। इस घटना से यह भी पता चलता है कि बेजुबान जानवरों के खिलाफ इंसान में छिपा हैवान किस हद तक जा सकता है। यह सब उस देश में हुआ है, जहां हाथी को पूजा जाता है, जहां जानवरों के खिलाफ हिंसा को लेकर कड़े कानून हैं और जहां की फिल्मों की शुरुआत में यह लाइन अनिवार्य रूप से दिखाई जाती है- ‘इस फिल्म के निर्माण के दौरान जानवरों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है।’
कड़े नियमों के कारण भारतीय फिल्मों से जानवर गायब होते जा रहे हैं, लेकिन बीते दौर में इंसान की जिंदगी में जानवरों के महत्व को रेखांकित करने और उनके प्रति प्रेम का संदेश देने वाली कई फिल्में बन चुकी हैं। दक्षिण के फिल्मकार एम.एम.ए. चिनप्पा देवर अपने पशु-प्रेम के लिए मशहूर थे। उनकी ज्यादातर तमिल और हिन्दी फिल्मों में जानवर कहानी का खास हिस्सा हुआ करते थे। ‘हाथी मेरे साथी’ के बाद उनकी ‘जानवर और इंसान’, ‘गाय और गौरी’, ‘मां’ तथा ‘मेरा रक्षक’ में कहीं शेर, कहीं गाय तो कहीं बकरी मौजूद रही। दक्षिण के ही दूसरे फिल्मकार विजय रेड्डी ने तो ‘तेरी मेहरबानियां’ (1985) में मोती नाम के श्वान को करीब-करीब नायक ही बना दिया, जो नायिका (पूनम ढिल्लों) से बलात्कार करने वालों से बदला लेता है। गोविंदा और चंकी पांडे की ‘आंखें’ में एक बंदर के करतब थे तो अक्षय कुमार की ‘एंटरटेनमेंट’ में श्वान कहानी का खास हिस्सा था। पिछले साल आई अमरीकी फिल्मकार चक रसेल की ‘जंगली’ में नायक (विद्युत जामवाल) और हाथी की दोस्ती देखने को मिली थी।
लॉकडाउन से पहले खबर आई थी कि विद्या बालन को लेकर ‘शेरनी’ नाम की फिल्म बनाई जाएगी। इसमें वह फोरेस्ट अफसर के किरदार में होंगी। फिल्म अवनी नाम की उस बाघिन के बारे में है, जिसे दो साल पहले यवतमाल (महाराष्ट्र) के जंगल में वन विभाग के अफसरों ने आदमखोर बताते हुए गोलियों से उड़ा दिया था। तब पशु-प्रेमियों के भारी विरोध के कारण महाराष्ट्र सरकार को मामले की जांच के आदेश देने पड़े थे। अब सबकी नजरें केरल सरकार पर हैं कि मासूम हथिनी की जान लेने वालों के खिलाफ वह क्या कार्रवाई करती है।