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अनुष्का शर्मा की ‘बुलबुल’ का मूवी रिव्यू, जानें क्या है खास, किस चीज ने किया निराश

locationमुंबईPublished: Jun 25, 2020 04:23:23 pm

बुलबुल ने ‘ठकुराइन’ बनकर हवेली संभाल रखी है। गांव में एक के बाद एक लोग मारे जा रहे हैं। इसके लिए ‘उलटे पैर वाली चुड़ैल’ को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आखिर माजरा क्या है? इसका जवाब सत्या को भी चाहिए और फिल्म देखने वालों को भी।

अनुष्का शर्मा की 'बुलबुल' का मूवी रिव्यू, जानें क्या है खास, किस चीज ने किया निराश

अनुष्का शर्मा की ‘बुलबुल’ का मूवी रिव्यू, जानें क्या है खास, किस चीज ने किया निराश

-दिनेश ठाकुर
अनुष्का शर्मा ( Anushka Sharma ) की निर्माण कंपनी की नई फिल्म ‘बुलबुल’ ( Bulbbul Movie ) के साथ हैदर अली आतिश के शेर ‘बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का/ जो चीरा तो इक कतरा-ए-खूं न निकला’ वाला मामला तो खैर नहीं है, फिर भी इसे देखने के बाद वह सब्र और सुकून महसूस नहीं होता, जो किसी अच्छी फिल्म को देखने के बाद होता है। फिल्म की शुरुआती रीलें खासी चुस्त-दुरुस्त हैं, घटनाएं सलीके से आगे बढ़ती हैं। यह सिलसिला बाद में बरकरार नहीं रहता और कहानी आम ढर्रे वाली हॉरर फिल्मों की पटरी पकड़ लेती है, जिसमें कब-कब, क्या-क्या होगा, आप पहले से भांप जाते हैं। गुरुवार को सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उतारी गई ‘बुलबुल’ निर्देशक अनविता दत्त की पहली फिल्म है। शायद वे कशमकश में थीं कि कहानी में रोमांस को ज्यादा उभारना है या महिलाओं से जुड़े सामाजिक मुद्दों को। इन दोनों की कॉकटेल में हॉरर का तड़का लगाने से फिल्म कई हिस्सों में डगमगा गई है। इन हिस्सों को देखकर जेहन में सवाल घूमते रहते हैं कि पर्दे पर जो हो रहा है, वैसा कभी कहीं हुआ भी है या हो भी सकता है?

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Do you see what we see? #Bulbbul, now streaming.

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‘बुलबुल’ की कहानी उन्नीसवीं सदी के बंगाल की है। ‘गुलाबो सिताबो’ ( Gulabo Sitabo ) की तरह यहां भी एक हवेली है, जो गांव के जमींदार इंद्रनील (राहुल बोस) की है। बुलबुल (तृप्ति डिमरी) की शादी बचपन में इंद्रनील से कर दी गई थी, जो उम्र में उससे काफी बड़ा है। इंद्रनील का जुड़वां भाई महेंद्र अपनी पत्नी बिनोदिनी (पाओली डेम) के साथ इसी हवेली में रहता है। मीना कुमारी की ‘साहिब बीवी और गुलाम’ की यादें ताजा करते हुए कहानी 20 साल बाद आगे बढ़ती है। इंद्रनील का छोटा भाई सत्या (अविनाश तिवारी) लंदन से कानून की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटता है तो सब कुछ बदला-बदला-सा पाता है। महेंद्र मारा जा चुका है और इंद्रनील कई साल से गायब है। बुलबुल ने ‘ठकुराइन’ बनकर हवेली संभाल रखी है। गांव में एक के बाद एक लोग मारे जा रहे हैं। इसके लिए ‘उलटे पैर वाली चुड़ैल’ को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आखिर माजरा क्या है? इसका जवाब सत्या को भी चाहिए और फिल्म देखने वालों को भी।

फिल्म की ज्यादातर रीलें तृप्ति डिमरी के कंधों पर टिकी हैं। कुछ जगह उनकी एक्टिंग ठीक-ठाक है, लेकिन बीच-बीच में उन्हें ओवर एक्टिंग के दौरे पडऩे लगते हैं तो फिल्म बोझिल हो जाती है। वैसे कलाकारों के मुकाबले ‘बुलबुल’ की फोटोग्राफी ज्यादा ध्यान खींचती है। हवेली और गांव के कुछ सीन बड़ी खूबसूरती से फिल्माए गए हैं। अफसोस की बात है कि बिखरी हुई पटकथा तकनीकी खूबियों को ढंग से नहीं उभरने देती। फिल्म पूरी होने के बाद यह सवाल दिमाग में घूमता रहता है कि इस तरह की अब तक कितनी हॉरर फिल्में बन चुकी हैं।

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