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कभी अतुल्य चंचल चेहरे वाली Geeta Bali का नाम ही फिल्म की कामयाबी के लिए काफी था

locationमुंबईPublished: Jan 21, 2021 02:48:12 am

आजादी के बाद गीता बाली ( Geeta Bali ) अदाकारी के शोख अंदाज लेकर उभरीं
निर्देशक और अभिनेता के रूप में गुरुदत्त ( Gurudutt ) की पहली फिल्मों में बिखेरे रंग
शम्मी कपूर ( Shammi Kapoor ) से 1955 में प्रेम विवाह के बाद भी फिल्मों में सक्रिय रहीं

Geeta Bali and Shammi Kapoor

Geeta Bali and Shammi Kapoor

-दिनेश ठाकुर
मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य ‘यशोधरा’ की पंक्तियों ‘अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी/ आंचल में है दूध और आंखों में पानी’ का फिल्मों ने काफी दोहन किया। किसी जमाने में ऐसी फिल्में खूब बनीं, जिनमें नायिकाओं पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता था और ज्यादातर रीलें उनके आंसुओं से भीगती रहती थीं। आजादी के बाद नर्गिस, मधुबाला, सुरैया, नलिनी जयवंत आदि इसी किस्म के धीर गंभीर किरदारों के जरिए छाई हुई थीं। उसी दौर में गीता बाली ( Geeta Bali )अदाकारी के शोख अंदाज लेकर उभरीं। पंजाब की अल्हड़, चंचल और बिंदास लड़की, जो हर हाल में मस्त रहना जानती है। उस दौर में हॉलीवुड की फिल्मों में जिस मासूम चुलबुलेपन के लिए रीटा हेवर्थ मशहूर थीं, वही गीता बाली की सहज-स्वाभाविक अदाकारी का सबसे बड़ा आकर्षण था। उन्हें टॉमबॉय कहा जाता था। हीरो चाहे कोई हो, फिल्म की कामयाबी के लिए गीता बाली का नाम काफी था।

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सबसे ज्यादा फिल्में देव आनंद के साथ
निर्देशक की हैसियत से गुरुदत्त ने अपनी पहली फिल्म ‘बाजी’ में गीता बाली को (वह इससे पहले कई फिल्मों में नजर आ चुकी थीं) उस दौर के तेजी से उभरते सितारे देव आनंद के साथ पेश किया। हालांकि फिल्म की नायिका कल्पना कार्तिक थीं, लेकिन ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ और ‘सुनो गजर क्या गाए’ पर लहराती सह-नायिका गीता बाली के साथ देव आनंद की जुगलबंदी ने दर्शकों को ज्यादा मोहित किया। बाद में यह जोड़ी ‘जाल’, ‘जलजला’, ‘फेरी’, ‘फरार’, ‘मिलाप’ और ‘पॉकेटमार’ में साथ आई। बतौर अभिनेता गुरुदत्त की पहली फिल्म ‘बाज’ की नायिका भी गीता बाली थीं।

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फिल्म चुनने का आधार सिर्फ किरदार
गीता बाली के लिए फिल्म चुनने का आधार सिर्फ किरदार होता था। नायक कौन है, इसकी परवाह उन्होंने कभी नहीं की। भगवान दादा के साथ ‘अलबेला’ में उनकी जोड़ी ने जो धूम मचाई थी, वह इस फिल्म के गीतों ‘भोली सूरत दिल के खोटे’, ‘शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के’, ‘शाम ढले खिड़की तले’, ‘धीरे से आ जा री अंखियन में’ और ‘किस्मत की हवा कभी नरम कभी गरम’ में आज भी गूंज रही है। उनकी दूसरी फिल्मों के ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां’ (जाल), ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है’ (बड़ी बहन), ‘हम प्यार में जलने वालों को’ (जेलर), ‘सारी-सारी रात तेरी याद सताए’ (अजी बस शुक्रिया), ‘चंदा मामा दूर के’ (वचन) जैसे गीत भी उनके सुनहरे दौर की कहानियां सुनाते हैं।

अशोक कुमार ने कहा था…
भारत भूषण के साथ ‘सुहाग रात’, पृथ्वीराज कपूर के साथ ‘आनंद मठ’, राज कपूर के साथ ‘बावरे नैन’ और शम्मी कपूर के साथ ‘मिस कोका कोला’ भी गीता बाली की उल्लेखनीय फिल्में हैं। उनके साथ कई फिल्मों में काम कर चुके अशोक कुमार ने एक बार कहा था- ‘मैंने गीता बाली जैसी स्वाभाविक अभिनेत्री दूसरी नहीं देखी। किसी भी किरदार में उन्हें देखकर यह नहीं लगता था कि वह एक्टिंग कर रही हैं। उनके साथ काम करने का मतलब चुनौती से कम नहीं होता था।’ अनिल कपूर और बॉनी कपूर के पिता सुरिन्दर कपूर कभी गीता बाली के सचिव हुआ करते थे। बाद में बतौर निर्माता उनकी हर फिल्म गीता बाली को श्रद्धांजलि के साथ शुरू होती थी। सुरिन्दर कपूर के बाद यह परम्परा बॉनी कपूर आज भी निभा रहे हैं।

अधूरी रह गई राजिन्दर सिंह बेदी की ‘रानो’
शम्मी कपूर ( Shammi Kapoor ) से 1955 में प्रेम विवाह के बाद भी गीता बाली फिल्मों में सक्रिय रहीं। चेचक की चपेट में आने के बाद 21 जनवरी,1965 को उनके देहांत से ‘रानो’ अधूरी रह गई। यह फिल्म राजिन्दर सिंह बेदी अपने उपन्यास ‘एक चादर मैली-सी’ पर बना रहे थे। यह शादीशुदा पंजाबी महिला रानो की कहानी है, जिसे अपने पति की मौत के बाद गांव की रस्म के मुताबिक अपने देवर मंगल से शादी करनी पड़ती है, जिसे उसने बच्चे की तरह पाला था। राजिन्दर सिंह बेदी का मानना था कि गीता बाली के अलावा कोई और अभिनेत्री रानो के किरदार के साथ इंसाफ नहीं कर सकती। ‘रानो’ में मंगल का किरदार धर्मेंद्र अदा कर रहे थे। बताया जाता है कि इस किरदार के लिए उन दिनों फिल्मों में दाखिले के लिए संघर्ष कर रहे राजेश खन्ना के नाम पर भी गौर किया गया था। गीता बाली के देहांत के बाद बेदी ने अपना उपन्यास उनकी चिता के हवाले किया और फिल्म बंद कर दी। बेदी के देहांत (1984) के दो साल बाद निर्देशक सुखवंत ढड्ढा ने हेमा मालिनी और ऋषि कपूर को लेकर इस उपन्यास पर ‘एक चादर मैली-सी’ बनाई।

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