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Sushant Singh Rajput की मौत के बाद Deepti Naval ने बंया किया अपना दर्द, सुसाइड करने का मन होता था

दीप्ति नवल (Deepti Naval)ने राजपूत को श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता भी साझा की है
उन्होंने अवसाद से उबरने की लड़ाई के दौरान लिखी थी यह कविता

नई दिल्लीJun 17, 2020 / 04:06 pm

Pratibha Tripathi

sushant singh rajput depression

नई दिल्ली। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मौत के बाद अब हर कोई अपनी बातों को खुलकर सबके सामने रख रहा है, और बताने की कोशिश कर रहा है कि इस इंडस्ट्री में वो ही ऐसे अकेले कलाकार नही थे जो डिप्रेशन का शिकार हुए थे। इन्ही के बीच 80 से 90 दशक की अभिनेत्री दीप्ति (Deepti Naval) नवल ने भी 90 अवसाद के समय अपनी जिंदगी की लड़ाई और आत्महत्या जैसे ख्यालों के खुलासे किए।

दीप्ति नवल ने एक पोस्ट के जरिए सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput death)को श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता के माध्यम से बताया कि है वो भी इस अवसाद का शिकार हो चुकी है। और उसी अवसाद की लड़ाई के दौरान उन्होंने एक कविता लिखा थी। 34 वर्षीय अभिनेता सुशांत सिंह(sushant singh rajput death pass away) भी डिप्रेशन का शिकार थे और इसी अवसाद के चलते उन्होंने रविवार को बांद्रा स्थित अपने अपार्टमेंट में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मुंबई पुलिस अब उनके कारणों का पता लगाने में जुटी है। जांच के दौरान पता चला है कि अभिनेता (sushant singh rajput depression)अवसाद का इलाज करा रहे थे।

दीप्ति (Deepti Naval depression)ने अवसाद में होने वाली हलचल के बारे में बताते हुए लिखा, ‘‘इन अंधेरे दिनों में… काफी कुछ हो रहा है… दिलो-दिमाग एक बिंदू पर जाकर ठहर गया है…या सुन्न हो गया। आज ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं उस कविता को शेयर करके बताऊं कि कैसे उन्होनें भी अवसाद के समय व्यग्रता और आत्महत्या के ख्यालों के साथ अपनी लंभी लड़ाई लड़ी थी।’’ अभिनेत्री दीप्ति नवल ने अपने करियर की शुरूआत श्याम बेनेगल की 1978 में आई फिल्म ‘जुनून’ से की थी। इसके बाद उन्होंने 80 के दशक में ‘चश्मे बद्दूर’ , ‘अनकही’, ‘मिर्च मसाला’, ‘साथ-साथ’ जैसी फिल्मों में काम किया।

दीप्ति नवल (Deepti Naval share post) ने अवसाद के समय जो कविता लिखी थी उस कविता का शीर्षक ‘ब्लैक विंड’ है। इसमें उन्होंने लिखा है कि कैसे घबराहट और बेचैनी एक इंसान को घेर लेती है। कविता में वह अवसाद और आत्महत्या जैसे ख्यालों से अपनी लड़ाई के बारे में बात करती हैं।

उन्होंने लिखा:

‘‘व्यग्रता और बेचैनी ने,

दोनों हाथों से पकड़ ली है मेरी गर्दन…..

मेरी आत्मा में बहुत गहरे तक धंसे जा रहे हैं,

इसके नुकीले पंजे…..

सांस लेने को छटपटा रही हूं मैं, अपने बिस्तर के तीखे चारपायों से लिपट कर…

इस कविता में दीप्ति नवल ने लिखा है कि किस तरह से उनका मन आत्महत्या करने का करता था और कैसे वे अपने डिप्रेशन से लड़ीं .

नवल ने कविता में आगे लिखा है :

‘‘टेलिफोन बजता है…नहीं, बंद हो गया…ओह!

कोई बोल क्यों नहीं रहा है?

एक इंसानी आवाज, इस शर्मनाक,

निष्ठुर रात की खाई में…

ये रात जो गहरे अंधकार में डूब गयी है,

और इसने ओढ़ ली है एक बैंगनी नीली सी चादर…..

अपने भीतर महसूस कर रही हूं एक गहरा अंधकार .’’

अंत में अभिनेत्री लिखती हैं कि वह इस अंधेरी रात से बचकर निकलेँगी। यह कविता उन्होंने 28 जुलाई, 1991 में लिखी थी। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने इस बाक का खुलासा किया था कि 90 के आखिरी दशक में उन्हें काम मिलना बेहद कम हो गया था। उन जैसी ‘‘संजीदा अभिनेत्री’’ के लिए इसे बर्दाश्त कर पाना कितना मुश्किल भरा रहा था कि उन्हें इस तरह दुनिया अनदेखा कर दे।

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