दरअसल वीरेंद्र सिंह पंजाबी सिनेमा के बहुत बड़े सुपरस्टार थे। 80 के दशक में वीरेंद्र सिंह का एक तरह से पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री पर राज था। हर निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्म में वीरेंद्र सिंह को ही लेने के लिए अड़ जाता था। वीरेंद्र सिंह न सिर्फ एक बेहतरीन एक्टर थे बल्कि एक सक्सेसफुल डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी रहे।

80 के दशक में ये आलम था कि वीरेंद्र सिंह देओल को अपनी फिल्म में लेने के लिए निर्माता-निर्देशकों में होड़ लग जाती थी। लेकिन जैसे-जैसे वीरेंद्र सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए, वैसे-वैसे उनके कई दुश्मन भी पैदा होते गए। वह सिर्फ पंजाबी ही नहीं बल्कि हिंदी फिल्मों में भी हाथ आजमा चुके हैं। उन्होंने 'खेल मुकद्दर का' और 'दो चेहरे बनाई। ये दोनों ही फिल्में सफल रहीं। वीरेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत भाई धर्मेंद्र के साथ 1975 में की थी। दोनों फिल्म 'तेरी मेरी एक जिंदड़ी' में नजर आए थे। एक तरफ जहां बॉलीवुड में धर्मेंद्र का सिक्का चलने लगा, वहीं दूसरी ओर वीरेंद्र भी सुपरस्टार बन गए थे। कहा जाता है कि उनकी यह सफलता उनकी दुश्मन बन गई थी, कई लोग उनसे चिढ़ने लगे थे। 6 दिंसबर, 1988 को वीरेंद्र सिंह फिल्म 'जट ते जमीन' की शूटिंग कर रहे थे और शूट के दौरान ही उनकी हत्या कर दी गई।