scriptदम नहीं हो तो स्टार पुत्र भी नहीं चल पाते, विरासत में नहीं मिलता हुनर | Even Star kids needs talent to be successful | Patrika News

दम नहीं हो तो स्टार पुत्र भी नहीं चल पाते, विरासत में नहीं मिलता हुनर

locationमुंबईPublished: Jul 27, 2020 10:48:33 pm

देव आनंद के पुत्र सुनील आनंद का हाल कुमार गौरव से भी बुरा रहा। उनकी चार फिल्मों ‘आनंद और आनंद’ (1984), कार थीफ (1986), मैं तेरे लिए (1988) और ‘मास्टर’ (2001) में से एक भी नहीं चली। दारा सिंह के पुत्र विन्दू की पहली फिल्म ‘करण’ (1994) कब आई, कब गई, पता नहीं चला।

दम नहीं हो तो स्टार पुत्र भी नहीं चल पाते, विरासत में नहीं मिलता हुनर

दम नहीं हो तो स्टार पुत्र भी नहीं चल पाते, विरासत में नहीं मिलता हुनर

-दिनेश ठाकुर
फिल्म इंडस्ट्री के बड़े सितारे क्या अपने पुत्रों को कामयाब कॅरियर थाली में सजा कर पेश कर सकते हैं? शायद नहीं, क्योंकि सिर्फ सितारा-पुत्र होना कामयाबी की गारंटी नहीं है। हुनर ही किसी कलाकार के लिए फिल्मों में लम्बी पारी की जमीन तैयार करता है। यह विरासत में नहीं मिलता। इतिहास गवाह है कि जिन सितारा-पुत्रों में अभिनय-तत्व कम थे (या थे ही नहीं), वे ज्यादा दूर और देर तक नहीं टिक पाए। जैसा कि मीना कुमारी का शेर है- ‘टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली/ जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली।’ हुनर के आंचल के हिसाब से सितारा-पुत्रों की पूछ-परख होती है।

राज कपूर ने ‘बॉबी’ (1973) में ऋषि कपूर को लॉन्च कर दूसरे सितारों को अपने-अपने पुत्रों को मैदान में उतारने की दिशा दिखा दी थी। अस्सी के दशक में कई सितारा-पुत्र तमाम तड़क-भड़क के साथ लॉन्च किए गए। सुनील दत्त ने संजय दत्त के लिए ‘रॉकी’ (१९८१) बनाई, राजेन्द्र कुमार ने कुमार गौरव के लिए ‘लव स्टोरी’ (१९८१) तो धर्मेंद्र ने सनी देओल के लिए ‘बेताब’ (1983)। संजय दत्त और सनी देओल बाद की कई फिल्मों में लडख़ड़ाने के बाद चल निकले, क्योंकि उन्हें उनकी क्षमता के मुताबिक किरदार मिलने लगे। लेकिन कुमार गौरव एक फिल्म का करिश्मा बनकर रह गए। ‘लव स्टोरी’ की कामयाबी के बाद उनकी फिल्में एक-एक कर टिकट खिड़की पर ढेर होने लगीं तो राजेंद्र कुमार ने ‘फूल’ (1993) बनाई, जिसमें वे माधुरी दीक्षित के साथ थे। यह फिल्म भी नहीं चली और कुमार गौरव भूली हुई दास्तान हो गए।
देव आनंद के पुत्र सुनील आनंद का हाल कुमार गौरव से भी बुरा रहा। उनकी चार फिल्मों ‘आनंद और आनंद’ (1984), कार थीफ (1986), मैं तेरे लिए (1988) और ‘मास्टर’ (2001) में से एक भी नहीं चली। दारा सिंह के पुत्र विन्दू की पहली फिल्म ‘करण’ (1994) कब आई, कब गई, पता नहीं चला। अमिताभ बच्चन को लेकर ‘मजबूर’ और ‘खुद्दार’ बनाने वाले निर्देशक रवि टंडन (रवीना टंडन के पिता) ने अपने पुत्र राज टंडन के लिए ‘एक मैं और एक तू’ (1986) बनाई। इसकी नाकामी के बाद वे पुत्र के लिए दूसरी फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। दूसरी तरफ जैकी श्रॉफ, अक्षय कुमार, शाहरुख खान, सुनील शेट्टी और मनोज वाजपेयी में से किसी का परिवार फिल्मी पृष्ठभूमि वाला नहीं था। सिर्फ हुनर और मेहनत के दम पर इन सभी ने अपने लिए मुकाम बनाया। हुनर के अभाव में फिल्मी पृष्ठभूमि वाले उदय चोपड़ा (यश चोपड़ा के पुत्र) को अब उनकी घरेलू कंपनी की फिल्मों में भी मौके नहीं मिल रहे हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो