इसके साथ ही वो बताती हैं कि उन्होंने भी चोरी छिपे पिता जी की किताबों को पढ़ना शुरु कर दिया था। उन्हीं से उन्हें बड़े कलाकारों के बारे में जाना। उन दिनों स्थानीय कलाकार एमवी धुरंधर की पेंटिंग उन्हें काफी अच्छी लगती थी। लेकिन तभी उनके पिता जी नहीं रहे। वह एक कठिन दौर था। उनकी मौत के बाद आर्ट टीचर शशि किशोर चव्हाण ने उनकी मां को इस बात के लिए राजी किया था कि वो पेंटिंग को सिर्फ शौकिया नहीं, बल्कि करियर के तौर पर लें। बाद में ‘सर जेजे स्कूल ऑफ ऑर्ट’ में उन्होंने दाखिला ले लिया।
वहां उन्होंने प्रोफेसर अहिवासी से मिनिएचर पेंटिंग बनाने की तालीम हासिल की। कला की यह शिक्षा काफी हद तक पश्चिमी कला से प्रभावित थी। इसी दौरान वें हुसैन रजा, सूजा और गैटोंडे के संपर्क में आई। उस समय पीएजी (प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप) बनाया गया और भानु उसकी एकमात्र महिला सदस्य थी। पीएजी जगह-जगह प्रदर्शनी आयोजित कराता था। उस दौरान उनकी दर्जनों पेंटिंग्स बनाई।
ऐसी ही एक प्रदर्शनी के लिए उन्होंने गंगौर घाट से प्रेरित होकर ‘स्नान घाट’ बनाया था। जिसकी काफी चर्चा हुई। लेकिन तभी मेरे करियर की दिशा बदल गई।
भानु ने फैशन एंड ब्यूटी मैगजीन में बतौर फैशन इलस्ट्रेटर काम शुरू कर दिया। बाद में उन्होंने वीकली मैगजीन ‘ईव’ के लिए भी काम किया। चित्रकार आरा इस बात पर बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने कहा था कि ‘तुम इलस्ट्रेटर क्यों बनना चाहती हो। यह कोई कला नहीं है। इस काम से सिर्फ तुम्हारी ही नहीं, बल्कि दूसरे कलाकारों की भी बेइज्जती होगी।’ लेकिन उन्होंने वही किया, जो उन्हे सही लगा। वो फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में आ गई।
भानु अथैय्या ने 100 से ज्यादा फिलमों के लिए ड्रस डिजाइन किए। उन्होंने गुरू दत्त से लेकर राज कपूर तक की फिल्मों के लिए ड्रेस डिजाइन किए। इसके साथ ही उन्होंने 1991 और 2002 में दो राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड्स जीते। मार्च 2010 में, अथैया ने हार्पर कॉलिंस द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक द आर्ट ऑफ़ कॉस्टयूम डिज़ाइन शुरु की। उन्होंने 13 जनवरी 2013 को दलाई लामा को अपनी किताब की एक प्रति भेंट की।