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आज गुलशन बावरा की बरसी पर विशेष, अमर कर दिया ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ ने

locationमुंबईPublished: Aug 07, 2020 09:32:26 pm

गुलशन कुमार मेहता का परिवार कभी लाहौर के पास शेखूपुरा में आबाद था। विभाजन के बाद भड़के दंगों के दौरान दस साल के गुलशन के सामने उनके पिता और चाचा की हत्या कर दी गई। किसी तरह बचकर यह बच्चा जयपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के पास पहुंचा।

आज गुलशन बावरा की बरसी पर विशेष, अमर कर दिया 'मेरे देश की धरती सोना उगले' ने

आज गुलशन बावरा की बरसी पर विशेष, अमर कर दिया ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ ने

-दिनेश ठाकुर

किसी रचनाकार को अमर करने के लिए उसकी एक सलीकेदार रचना ही काफी है। मसलन अमरीकी लेखिका मार्गरेट मिशेल ने सिर्फ एक उपन्यास ‘गोन विद द विंड’ लिखा और अमर हो गईं। इस पर हॉलीवुड ने 1939 में इसी नाम से फिल्म बनाई, जो क्लासिक का दर्जा रखती है। अमरीका के राल्फ एलिसन (इनविजिबल मैन) और रूस के बोरिस पेस्टरनेक (डॉ. जिवागो) को भी उनके एकमात्र उपन्यास ने साहित्य में उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जो हर लेखक का सपना हुआ करता है। इसी तरह अगर गुलशन बावरा ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ (उपकार) के अलावा कोई और गीत नहीं लिखते तो भी उनका नाम अमर रहता। हर गणतंत्र और स्वाधीनता दिवस पर ही नहीं, चुनावों के दौरान भी देशभक्ति के जज्बे वाला यह गीत सुनाई दे जाता है। यूं गुलशन बावरा ने चार दशक लम्बे फिल्मी कॅरियर में करीब ढाई सौ गाने लिखे, लेकिन ‘मेरे देश की धरती’ उनका प्रतिनिधि गीत बन गया।

गुलशन कुमार मेहता का परिवार कभी लाहौर के पास शेखूपुरा में आबाद था। विभाजन के बाद भड़के दंगों के दौरान दस साल के गुलशन के सामने उनके पिता और चाचा की हत्या कर दी गई। किसी तरह बचकर यह बच्चा जयपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के पास पहुंचा। बहन ने ही उसकी परवरिश की। बताते हैं कि सालों बाद गुलशन बावरा ने बहन के समर्पण को याद करते हुए राजेश खन्ना की फिल्म के लिए ‘हमें और जीने की चाहत न होती, अगर तुम न होतेÓ लिखा। यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ। लेकिन यह बाद का किस्सा है। जयपुर से उनका परिवार पचास के दशक में दिल्ली शिफ्ट हुआ और वहां से रेलवे क्लर्क की नौकरी करने गुलशन कुमार मेहता मुम्बई पहुंचे। कविताएं लिखने का शौक बचपन से था। यही शौक संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी से मुलाकात का जरिया बना। गुलशन रंग-बिरंगी कमीजें पहना करते थे। इसलिए उनके नाम में ‘कुमार मेहता’ की जगह ‘बावरा’ जुड़ गया।

गुलशन बावरा ने फिल्मों में हर मूड, हर रंग के गाने लिखे। इनमें हौसला देने वाला ‘आती रहेंगी बहारें, जाती रहेंगी बहारें, दिल की नजर से दुनिया को देखो, दुनिया सदा ही हसीं है’ (कस्मे-वादे) भी है, दोस्ती के जज्बे वाला ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’ (जंजीर) भी और उदासी में डूबा ‘लहरों की तरह यादें’ (निशान) भी। उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार भी अदा किए। सांसों का सफर थमने तक (7 अगस्त, 2009) उनकी लेखनी गीत रचती रही।

कुछ और सदाबहार गीत
गुलशन बावरा के दूसरे लोकप्रिय गानों में ‘हमने तुमको देखा’ (खेल खेल में), हर खुशी हो वहां तू जहां भी रहे (उपकार), तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे (सट्टा बाजार), चांद को क्या मालूम (लाल बंगला), चांदी की दीवार न तोड़ी (विश्वास), प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया (सत्ते पे सत्ता), वादा कर ले साजना (हाथ की सफाई), हमने जो देखे सपने (परिवार), बनाके क्यों बिगाड़ा रे (जंजीर) और ‘बचके रहना रे बाबा’ (पुकार) शामिल हैं।

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