चूंकि प्रियंका चोपड़ा हॉलीवुड की हॉरर-थ्रिलर ‘ईवल आई’ के निर्माताओं में से एक हैं, इसलिए इसके ज्यादातर कलाकार भारतीय हैं। हॉलीवुड में इसी नाम से पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं। ताजा फिल्म का किस्सा यह है कि विदेश में बसी भारतीय युवती (सुनीता मणि) रईस युवक (उमर मस्कती) को दिल दे बैठती है। युवती की मां को कुछ अदृश्य शक्तियों के जरिए महसूस होता है कि उसकी बेटी को काले अतीत वाले इस युवक से बचकर रहना चाहिए। यानी यहां भी बुरी नजर और तंत्र-मंत्र जैसा कुछ मामला है।
भारतीय सिनेमा को अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है, जबकि इस मामले में हॉलीवुड हमसे कहीं आगे है। हॉरर के नाम पर वहां सैकड़ों ऐसी फिल्में बन चुकी हैं, जो भूत-प्रेत, सूनी हवेलियों-खंडहरों, चमत्कारों और तरह-तरह के टोटकों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। तंत्र की ताकत और मंत्र की महिमा को लेकर भारत में कई अलौकिक कथाएं सदियों से प्रचलित हैं।वा देने के लिए कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है, जबकि इस मामले में हॉलीवुड हमसे कहीं आगे है। हॉरर के नाम पर वहां सैकड़ों ऐसी फिल्में बन चुकी हैं, जो भूत-प्रेत, सूनी हवेलियों-खंडहरों, चमत्कारों और तरह-तरह के टोटकों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। तंत्र की ताकत और मंत्र की महिमा को लेकर भारत में कई अलौकिक कथाएं सदियों से प्रचलित हैं। विज्ञान इन कथाओं को खारिज करता है, फिर भी एक बड़ी आबादी इन पर भरोसा करती है। इसी आबादी को ध्यान में रखकर 1980 में अरुणा-विकास ने ‘गहराई’ नाम की हॉरर फिल्म बनाई थी। इसमें एक कंपनी के मैनेजर (डॉ. श्रीराम लागू) की बेटी (पद्मिनी कोल्हापुरे) की गंभीर बीमारी को ‘प्रेत-बाधा’ बताया जाता है। तमाम डॉक्टर हाथ खड़े कर देते हैं। आखिर में एक तांत्रिक झाड़-फूंक कर उसकी बीमारी को नौ-दो-ग्यारह कर देता है।
‘गहराई’ की पटकथा साहित्यकार विजय तेंदुलकर ने लिखी थी। फिल्म के साथ-साथ वे भी आलोचकों के निशाने पर रहे थे। तेंदुलकर को सफाई देनी पड़ी थी कि यह फिल्म ऐसे अनुभव के बारे में है, जिसकी कोई तार्किक परिभाषा नहीं है। फिल्म के शुरू में कहा गया था- ‘जो इसे मानते हैं, उनके लिए कोई कैफियत (स्पष्टीकरण) जरूरी नहीं है और जो नहीं मानते, उन्हें कैफियत की क्या जरूरत है।’