scriptआज उठेगा वेनिस फिल्मोत्सव का पर्दा, हम बस दो तक सीमित | Indian movies in Venice Film Festival 2020 | Patrika News

आज उठेगा वेनिस फिल्मोत्सव का पर्दा, हम बस दो तक सीमित

locationमुंबईPublished: Sep 02, 2020 11:47:14 pm

वेनिस फिल्म समारोह ( Venice Film Festival 2020 ) में 1937 में पहली बार भारतीय फिल्म ‘संत तुकाराम’ (मराठी) ( Sant Tukaram Movie ) ने सुर्खियां बटोरी थीं, जब इसे दुनिया की तीन बेहतरीन फिल्मों में गिना गया। इसके 20 साल बाद 1957 में पहली बार भारत की ‘अपराजितो’ ( Aparajito Movie ) ने गोल्डन लॉयन अवॉर्ड ( Golden Lion Award ) जीता।

आज उठेगा वेनिस फिल्मोत्सव का पर्दा, हम बस दो तक सीमित

आज उठेगा वेनिस फिल्मोत्सव का पर्दा, हम बस दो तक सीमित

-दिनेश ठाकुर

यूरोप के सबसे रूमानी शहरों में गिने जाने वाले वेनिस में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह ( Venice Film Festival 2020 ) दो सितम्बर से शुरू हो रहा है। कोरोना काल में यह सिनेमा का पहला बड़ा आयोजन है, जो अपने तयशुदा टाइम टेबल के मुताबिक हो रहा है, वर्ना कोरोना से कान्स फिल्म समारोह समेत कई दूसरे प्रमुख आयोजनों का हिसाब-किताब गड़बड़ा चुका है। नहरों और पुलों के शहर वेनिस के प्रतिष्ठित फिल्म समारोह में ग्यारह साल बाद यह पहला मौका है, जब इसका पर्दा इसके देश इटली की फिल्म (द टाइस) से उठेगा और 12 सितम्बर को इटली की ही फिल्म (यू केम बैक) से गिरेगा। समारोह में दुनियाभर की करीब 150 फिल्में दिखाई जाएंगी। अफसोस की बात है कि हर साल दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाले भारत की ऐसे आयोजनों में शिरकत दो-तीन फिल्मों से आगे नहीं जा पाती। इस बार वेनिस समारोह के लिए हमारी दो फिल्में ‘द डिसाइपल’ ( The Disciple ) और ‘मील पत्थर’ ( Meel Patthar Movie ) चुनी गई हैं। पिछले साल सिर्फ एक फिल्म ‘चोला’ (मलयालम) को शिरकत का मौका मिला था। निर्देशक चैतन्य ताम्हणे की ‘द डिसाइपल’ प्रतियोगिता वर्ग में शामिल है। गोल्डन लॉयन अवॉर्ड के लिए इसकी टक्कर विभिन्न देशों की 17 फिल्मों से होगी।

वेनिस फिल्म समारोह ( Venice Film Festival 2020 ) में 1937 में पहली बार भारतीय फिल्म ‘संत तुकाराम’ (मराठी) ( Sant Tukaram Movie ) ने सुर्खियां बटोरी थीं, जब इसे दुनिया की तीन बेहतरीन फिल्मों में गिना गया। इसके 20 साल बाद 1957 में पहली बार भारत की ‘अपराजितो’ ( Aparajito Movie ) ने गोल्डन लॉयन अवॉर्ड ( Golden Lion Award ) जीता। निर्देशक सत्यजित राय की इस फिल्म की यह उपलब्धि इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण थी कि इसने जापान के मशहूर फिल्मकार अकीरा कुरोसावा की बहुचर्चित ‘थ्रॉन ऑफ ब्लड’ को हरा कर यह जीत हासिल की थी। दूसरे गोल्डन लॉयन के लिए भारत को 44 साल इंतजार करना पड़ा। मीरा नायर की ‘मानसून वेडिंग’ को 2001 में इस अवॉर्ड से नवाजा गया। अब 19 साल बाद ‘द डिसाइपल’ भारत के खाते में तीसरा गोल्डन लॉयन अवॉर्ड जोडऩे के लिए दौड़ में है।

वेनिस, कान्स, बर्लिन और टोरंटो के फिल्मोत्सव में भारतीय सिनेमा की नाम मात्र की शिरकत से साफ है कि हमारी फिल्में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने के मोर्चे पर फिसड्डी साबित हो रही हैं। हमारे ज्यादातर फिल्मकार देशी-विदेशी फिल्मों के रीमेक में उलझे रहते हैं या आजमाए हुए फार्मूलों को बार-बार दोहराते रहते हैं। सिनेमा से भी दूसरी कलाओं की तरह नई कल्पनाओं, नए सृजन और नए विचारों का आग्रह रहता है। लेकिन हमारी फिल्में उन्हीं घिसे-पिटे मसालों में पकती रहती हैं, जिनके जायके में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की कोई दिलचस्पी नहीं है। भारतीय सिनेमा की भलाई इसी में है कि फिल्मों की गिनती के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। जैसा कि महबूब खिजां ने फरमाया है- ‘मैं तुम्हें कैसे बताऊं क्या कहो/ कम कहो, अपना कहो, अच्छा कहो।’

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