गुस्सा आने के बारे में पूछे जाने पर पूजा ने कहा, ‘दुर्भाग्य से, जब एक महिला स्पष्ट रूप से बातचीत करती है, तो लोगों को लगता है कि वह गुस्से में है, लेकिन जब महेशजी एक निश्चित स्वर में बोलते हैं तो लोगों को लगता है कि वह उनकी सोच प्रक्रिया तीव्र है।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब महिला सुंदर है और अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में स्पष्ट बोलती है और ना करती है तो लोग हैरान क्यों हो जाते हैं और सोचते हैं कि वह गुस्से में है।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक चीज मैं जानती हूं कि मैं क्या चाहती हूं और सबसे जरूरी क्या है। मुझे पता है कि मैं क्या नहीं चाहती। भारत में जब हम सीता या सावित्री हैं तब तक सहज हैं, लेकिन जब महिलाएं काली मां बन जाती हैं तो दिक्कत हो जाती है, इसलिए मैं इन विपरीत व्यक्तित्वों का मिश्रण हूं।’
पूजा का जवाब सुन बगल में बैठे महेश भट्ट हंसने लगते हैं तो पूजा कहती हैं, ‘मैं लक्ष्मी भी हूं, सीता और सावित्री भी हूं लेकिन मैं सती नहीं हूं, मैं कभी सती नहीं बनूंगी, बिल्कुल भी नहीं। जो मुझे नहीं बर्दाश्त कर सकता न करे, जो नहीं सुनना चाहता न सुने, फॉलो नहीं करना तो न फॉलो करे… लेकिन मैं सोचूंगी, जिऊंगी और जो हूं वही रहूंगी, इस मामले में मेरी कोई दूसरी पसंद भी नहीं है। यह मेरा व्यवहार है, जो मुझे पिता महेश भट्ट से जागीर में मिला है। दुनिया औरत की स्माइल देखना पसंद करती है उसका प्रचंड रूप बर्दाश्त नहीं करती।’