scriptजॉनी मेरा नाम’ के 50 साल पूरे, फिल्म के नाम को लेकर हुई थी Raj Kapoor और गुलशन राय में तनातनी | Johny Mera Naam Movie completes 50 years, Know unknown facts | Patrika News

जॉनी मेरा नाम’ के 50 साल पूरे, फिल्म के नाम को लेकर हुई थी Raj Kapoor और गुलशन राय में तनातनी

locationमुंबईPublished: Nov 11, 2020 08:50:23 pm

‘जॉनी मेरा नाम’ ( Johny Mera Naam Movie ) के साथ तनातनी के कुछ किस्से भी जुड़े हुए हैं। यह तनातनी गुलशन राय ( Gulshan Rai ) और राज कपूर ( Raj Kapoor ) के बीच हुई थी। राज कपूर उन दिनों ‘मेरा नाम जोकर’ ( Mera Naam Joker Movie ) को सिनेमाघरों में उतारने की तैयारी कर रहे थे। वे यह जानकर हैरान-परेशान हुए कि उनकी फिल्म के नाम से मिलते-जुलते नाम वाली एक फिल्म बनाई जा चुकी है।

johny_mera_naam.png

-दिनेश ठाकुर
पचास साल पहले 11 नवम्बर को देव आनंद ( Dev Anand ) और हेमा मालिनी ( Hema Malini ) की ‘जॉनी मेरा नाम’ ( Jhony Mera Naam Movie ) सिनेमाघरों में पहुंची और हिन्दी सिनेमा में गुलशन राय ( Gulshan Rai ) के रूप में ऐसे निर्माता का उदय हुआ, जिसकी आम दर्शकों की नब्ज पर जबरदस्त पकड़ थी, जो नामी निर्देशकों और सितारों के साथ खालिस मनोरंजन परोसने में यकीन रखता था तथा जिसे इल्म था कि किस तरह की फिल्मों में धन लगाकर उसका कई गुना वापस हासिल किया जा सकता है। गुलशन राय के लिए ‘जॉनी मेरा नाम’ पुख्ता बुनियाद साबित हुई, जिस पर उन्होंने बाद में ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’ और ‘गुप्त’ जैसी मनोरंजन की मीनारें खड़ी कीं। ‘जॉनी मेरा नाम’ की कामयाबी इस लिहाज से भी उल्लेखनीय है कि यह ऐसे दौर में आई थी, जब नए-नए उभरे सुपर सितारे राजेश खन्ना की फिल्में धूम मचा रही थीं। उनकी ‘सच्चा झूठा’, ‘आन मिलो सजना’, ‘सफर’ और ‘द ट्रेन’ 1970 में ही आई थीं। इन सभी को पीछे छोड़ते हुए ‘जॉनी मेरा नाम’ उस साल सबसे ज्यादा कारोबार करने वाली फिल्म साबित हुई।

Neha-Rohan Love Story: नेहा को पहली बार में ही पसंद आया रोहन का यह अंदाज

‘बिछुड़े और मिले’ का सदाबहार फार्मूला
निर्देशक विजय आनंद के लिए, जो ‘गाइड’, ‘तीसरी मंजिल’ और ‘ज्वैल थीफ’ बना चुके थे, मसालेदार ‘जॉनी मेरा नाम’ बनाना अलग तरह का अनुभव था। उन्होंने ‘बिछुड़े और मिले’ के उस फार्मूले पर इसकी कहानी बुनवाई, जिस पर चालीस के दशक में अशोक कुमार की ‘किस्मत’ बन चुकी थी। यानी दो भाइयों की कहानी, जो बचपन में बिछुड़ जाते हैं। एक पुलिस अफसर बनता है, दूसरा मुजरिम। ‘जॉनी मेरा नाम’ में यह किरदार देव आनंद और प्राण ने अदा किए। इस फिल्म की धमाकेदार कामयाबी के बाद ‘बिछुड़े और मिले’ पर फिल्मों की बाढ़-सी आ गई- ‘मेला’, ‘धरम वीर’, ‘यादों की बारात’, ‘अमर अकबर एंथॉनी’ आदि।

गानों का शानदार फिल्मांकन
हिन्दी सिनेमा में गानों के फिल्मांकन के मामले में गुरुदत्त और राज कपूर की तरह विजय आनंद को भी मास्टर माना जाता था। ‘गाइड’ के क्लासिक गानों को याद कीजिए, जिनमें से ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ में मटके फोड़तीं वहीदा रहमान की उमंग चरम पर नजर आती है या ‘तेरे घर के सामने’ में ‘दिल का भंवर करे पुकार’, जो कुतुब मीनार की सीढिय़ां उतरते देव आनंद और नूतन पर फिल्माया गया। ‘जॉनी मेरा नाम’ में भी गानों का फिल्मांकन कमाल का है। खासकर ‘पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले’ में एक के बाद एक इमारत में जितनी खिड़कियां दिखाई गईं, वैसी सूझ-बूझ विजय आनंद का खासा थी। यह सूझ-बूझ ‘नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं’ और ‘छुप-छुप मीरा रोए’ में भी छन-छन कर झिलमिलाती है।

कोरोना के कारण खूब ली दवाईयां, तमन्ना का शरीर हो गया था भारी, हर पल लगता था मरने का डर

‘मेरा नाम जोकर’ भी 1970 में आई थी
‘जॉनी मेरा नाम’ के साथ तनातनी के कुछ किस्से भी जुड़े हुए हैं। यह तनातनी गुलशन राय और राज कपूर के बीच हुई थी। राज कपूर उन दिनों ‘मेरा नाम जोकर’ को सिनेमाघरों में उतारने की तैयारी कर रहे थे। वे यह जानकर हैरान-परेशान हुए कि उनकी फिल्म के नाम से मिलते-जुलते नाम वाली एक फिल्म बनाई जा चुकी है। यह तनातनी वैसी ही रही, जैसी कई साल बाद ‘खलनायक’ और ‘खलनायिका’ के नामों को लेकर हुई। बहरहाल, ‘जॉनी मेरा नाम’ के कुछ हफ्तों बाद ‘मेरा नाम जोकर’ सिनेमाघरों में पहुंची और इसकी नाकामी ने राज कपूर का सपना चूर-चूर कर दिया। इसे काफी बाद में क्लासिक फिल्म का दर्जा मिला, लेकिन अगर इसे 1970 में ही कारोबारी कामयाबी मिलती, तो शायद आगे राज कपूर के सिनेमा की दिशा और दशा कुछ और होती।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो