भाटिया मुंबई के अपने घर में अकेले रहते हैं। छोटे-मोटे काम के लिए भी उन्हें मदद की जरुरत होती है। कभी पड़ोसी तो कभी किसी मददगार की बदौलत वह अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जीवन के इस पड़ाव पर वह अपनों से दूर हैं। वह अकेलेपन के इस कदर शिकार हो चुके हैं कि वह उम्मीद ही खो चुके हैं कि कोई उनकी सुध लेने भी आ सकता है। अपने घुटनों के दर्द से बेहद पीड़ित इस कालजयी संगीतकार को अब एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए भी मदद की जरुरत होती है। सुनने में भी दिक्कत होती है साथ ही अब उनकी याददाश्त भी कमजोर हो रही है। यहां तक की उनके पास ईलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं। वह अपने घर के बर्तन तक बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
साल 1988 में आई गोविंद निहलानी की फिल्म ‘तमस’ के लिए भाटिया को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और उन्हें 2012 में पद्म श्री भी मिला। उन्होंने कुंदन शाह की फिल्म ‘जाने भी दो यारों’, अपर्णा सेन की फिल्म ’36 चौरंगी लेन’ और प्रकाश झा की फिल्म ‘हिप हिप हुर्रे’ के लिए भी काम किया है। साल 1974 में आई ‘अंकुर’ से लेकर 1996 की ‘सरदारी बेगम’ तक वनराज हमेशा से ही मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल के पसंदीदा रहे थे। इन दोनों की जोड़ी ने ‘मंथन’, ‘भूमिका’, ‘जुनून’, ‘कलयुग’, ‘मंडी’, ‘त्रिकाल’ और ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ जैसी फिल्मों में साथ काम किया है। 1989 में संगीत नाटक अकादमी के प्राप्तकर्ता भाटिया ने लंदन के रॉयल अकादमी ऑफ म्यूजिक से वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की पढ़ाई की है।