रोमांस और कॉमेडी के तड़के वाली ‘एक थी लड़की’ में मीना शौरी ने जो बोल्ड किरदार अदा किया, निजी जिंदगी में वे इससे ज्यादा बोल्ड थीं। उनका असली नाम खुर्शीद जहां ( Khurshid Jehan ) था। सोलह साल की उम्र में उन्होंने निर्माता-निर्देशक जहूर राजा से शादी की, जो कुछ महीनों बाद टूट गई। अभिनेता अल नासिर से दूसरी शादी भी ज्यादा नहीं चली तो उन्होंने फिल्मकार रूप के. शौरी से शादी कर ली। यह रिश्ता ठीक-ठाक चल रहा था और मीना शौरी को फिल्में भी लगातार मिल रही थीं, लेकिन 1956 में वे पाकिस्तान चली गईं। यानी रूप के. शौरी से भी रिश्ता टूट गया। बतौर अभिनेत्री पाकिस्तान में भी उनका सिक्का चल निकला। वहां उन्होंने दो और शादियां कीं, जो पहले की शादियों की तरह नहीं टिक पाईं। ढलती उम्र के साथ पाकिस्तानी फिल्मों में उनकी मांग घटती चली गई। कमाई के रास्ते बंद हुए तो रिश्तेदार भी उनसे दूर हो गए।
किसी ने खूब कहा है- ‘बुलंदियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं/ बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है।’ मीना शौरी को ‘लारा लप्पा’ की तूफानी कामयाबी ने जो बुलंदी अता की थी, वे उस पर ठहरने का कमाल नहीं दिखा पाईं। उनकी हालत उस मृग जैसी थी, जो कस्तूरी की खुशबू अपने भीतर होने के बावजूद इसकी खोज में जंगल-जंगल भटकता रहता है। पाकिस्तान में उनके आखिरी दिन गुमनामी और बदहाली में गुजरे। लाहौर में 3 सितम्बर, 1989 को देहांत के बाद उन्हें दफनाने के लिए चंदे से रकम जुटानी पड़ी। फिल्मों की चकाचौंध की यह बेरहम हकीकत है.. ‘जब तलक था नाम, काफी रौनकें घर में रहीं/ कामयाबी क्या गई, रिश्तों का मौसम भी गया।’