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19 साल तक जिंदा रहकर भी ‘कागज’ में मृत रहा ‘मृतक सिंह’, Pankaj Tripathi की नई फिल्म

locationमुंबईPublished: Aug 11, 2020 04:50:57 pm

लाल बिहारी को 1975 से 1994 तक खुद को जिंदा साबित करने के लिए तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़े। उसे पता चला कि इसी तरह करीब सौ और जिंदा लोग सरकारी फाइलों में ‘मृत’ पड़े हैं। लाल बिहारी ( Lal Bihari ) 19 साल तक ‘मृतक सिंह’ ( Mritak Singh ) के तौर पर सुर्खियां में रहा। इस दौरान ‘जैसे को तैसा’ पर अमल करते हुए उसने अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन भी मंजूर करवा ली।

19 साल तक जिंदा रहकर भी 'कागज' में मृत रहा 'मृतक सिंह', पत्नी को दिलवाई विधवा पेंशन

19 साल तक जिंदा रहकर भी ‘कागज’ में मृत रहा ‘मृतक सिंह’, पत्नी को दिलवाई विधवा पेंशन

-दिनेश ठाकुर

शरर कश्मीरी का शेर है- ‘हंसना रोना आहें भरना, सब कागज पर चलता है/इस दुनिया में जीना-मरना अब कागज पर चलता है।’ सरकारी नियमों के कारण आदमी का वजूद कागजों में सिमट कर रह गया है। ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आइडी और आधार कार्ड तक तो ठीक है, लेकिन रोज बगीचों में मॉर्निंग वॉक करने वाले अच्छे-खासे बुजुर्गों को प्रमाण पत्र पेश कर साबित करना पड़ता है कि वे जिंदा हैं। जिनके पास यह प्रमाण पत्र नहीं है, उनकी पेंशन और दूसरी सरकारी सुविधाएं रोक ली जाती हैं। यानी उन्हें जिंदा मानने से इनकार कर दिया जाता है। ऐसे कई मामले समय-समय पर सामने आते रहते हैं। आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) के भरत लाल उर्फ लाल बिहारी के साथ कागजों का अजब-गजब खेल खेला गया। उसकी जमीन हड़पने के लिए रिश्तेदारों ने अफसरों से मिलीभगत कर उसे सरकारी कागजों में मृत घोषित करवा दिया। उसने बैंक लोन के सिलसिले में राजस्व विभाग से सम्पर्क किया तो बताया गया कि उसे लोन नहीं मिल सकता, क्योंकि वह मर चुका है। लाल बिहारी को 1975 से 1994 तक खुद को जिंदा साबित करने के लिए तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़े। उसे पता चला कि इसी तरह करीब सौ और जिंदा लोग सरकारी फाइलों में ‘मृत’ पड़े हैं। लाल बिहारी ( Lal Bihari ) 19 साल तक ‘मृतक सिंह’ ( Mritak Singh ) के तौर पर सुर्खियां में रहा। इस दौरान ‘जैसे को तैसा’ पर अमल करते हुए उसने अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन भी मंजूर करवा ली।

लाल बिहारी के अजीबो-गरीब मामले पर ‘कागज’ ( Kaagaz Movie ) नाम से फिल्म बनाई गई है। इसका निर्देशन सतीश कौशिक ( Satish Kaushik ) ने किया है, जिन्होंने हाल ही बॉलीवुड में 41 साल पूरे किए हैं। ‘मासूम’ (1983) के निर्देशक शेखर कपूर के सहायक रहे सतीश कौशिक ने हास्य अभिनेता के रूप में अलग पहचान बनाई। ‘मि. इंडिया’ में उनका कैलेंडर और ‘दीवाना मस्ताना’ में पप्पू पेजर का किरदार लोगों को आज भी याद है। निर्देशक के तौर पर उनकी दो शुरुआती फिल्मों ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘प्रेम’ (तब्बू की पहली फिल्म) के साथ माया मिली न राम वाला मामला रहा। बाद में ‘हम आपके दिल में रहते हैं’ और ‘तेरे नाम’ से निर्देशन में उनका सिक्का चल निकला। वे कुंदन शाह की क्लासिक कॉमेडी ‘जाने भी दो यारों’ के लेखकों की टीम में शामिल थे, इसलिए ‘कागज’ सिस्टम पर तीखी और तल्ख शैली वाली फिल्म हो सकती है।

‘कागज’ में लाल बिहारी का किरदार पंकज त्रिपाठी ने अदा किया है, जो नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी की परम्परा के अभिनेता के तौर पर उभरे हैं। ‘न्यूटन’, ‘बरेली की बर्फी’ और ‘स्त्री’ के बाद इन दिनों वे ‘गुंजन सक्सेना’ को लेकर सुर्खियों में हैं। उम्मीद है, ‘कागज’ में वे अभिनय की नई इबारतें लिखेंगे।

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