scriptPriyanka Chopra की ‘द व्हाइट टाइगर’ दिसम्बर में, इंडियन सोसायटी की समस्याओं पर है फोकस | Priyanka Chopra film The White Tiger release in December | Patrika News

Priyanka Chopra की ‘द व्हाइट टाइगर’ दिसम्बर में, इंडियन सोसायटी की समस्याओं पर है फोकस

locationमुंबईPublished: Oct 17, 2020 07:35:30 pm

प्रियंका चोपड़ा ( Priyanka Chopra ) की ‘द व्हाइट टाइगर’ ( The White Tiger Movie भारतीय समाज की उन समस्याओं पर फोकस करती है, जिनके साथ ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’ वाला मामला है। दिसम्बर में इसके डिजिटल प्रीमियर की तैयारी चल रही है।

Priyanka Chopra की 'द व्हाइट टाइगर' दिसम्बर में, इंडियन सोसायटी की समस्याओं पर है फोकस

Priyanka Chopra की ‘द व्हाइट टाइगर’ दिसम्बर में, इंडियन सोसायटी की समस्याओं पर है फोकस

-दिनेश ठाकुर

आठ साल पहले आई रूसी फिल्म ‘व्हाइट टाइगर’ ( The White Tiger Movie ) ने युद्ध के माहौल को भावपूर्ण अंदाज में पर्दे पर उतारा था। रूसी लेखक ईया बोयाशॉव के उपन्यास ‘टैंकिस्ट’ पर आधारित इस फिल्म में एक सोवियत टैंक कमांडर की नजर से युद्ध के मनोविज्ञान का जायजा लिया गया। साहिर लुधियानवी ने बरसों पहले अपनी नज्म ‘जंग’ में कहा था- ‘बम घरों पर गिरें कि सरहद पर/ रूह-ए-तामीर (रचना प्रक्रिया) जख्म खाती है/.. टैंक आगे बढ़े कि पीछे हटें/ कोख धरती की बांझ होती है।’ फिर भी दुनिया में युद्ध का जुनून कायम है। ‘व्हाइट टाइगर’ का टैंक कमांडर इसी जुनून में दिमागी संतुलन खो चुका है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान टैंकों और गोला-बारूद के बीच रहकर वह खुद को भी टैंक समझने लगता है। पूरी फिल्म में वह नाजियों के सफेद रंग के उस टैंक को तहस-नहस करने की मुहिम में जुटा रहता है, जो रूसी फौज पर बार-बार हमले कर गायब हो जाता है। फिल्म के आखिर में हिटलर पर्दे पर आकर कहता है कि युद्ध कभी खत्म नहीं होता। यह स्थाई मानव अवस्था है। यानी वक्त गुजरता रहता है, ‘महाभारत’ नए रूपों में चलती रहती है। हिन्दी सिनेमा वाले ‘युद्ध’ नाम से फिल्म बनाते हैं और ‘डंके पे चोट पड़ी है/ सामने फौज खड़ी है/ कृष्ण ने कहा अर्जुन से/ न प्यार जता दुश्मन से/ युद्ध कर, युद्ध कर’ जैसे गीत सुनाते हैं।

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अरविंद अडिगा का उपन्यास ‘द व्हाइट टाइगर’

बहरहाल, जब रूसी फिल्म ‘व्हाइट टाइगर’ सुर्खियों में थी, उन्हीं दिनों भारतीय लेखक अरविंद अडिगा का उपन्यास ‘द व्हाइट टाइगर’ बुकर प्राइज जीतकर सुर्खियों में रहा। रूसी फिल्म और इस उपन्यास में वही फर्क है, जो रात और दिन में हुआ करता है। यानी युद्ध से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इसका लेना-देना भारतीय समाज की उन समस्याओं से हैं, जिनके साथ ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’ वाला मामला है। ऊंच-नीच, भ्रष्टाचार और गरीबी को लेकर अरविंद अडिगा ने उपन्यास में जो तस्वीरें खीची हैं, उन पर ‘द व्हाइट टाइगर’ नाम से ही फिल्म बनाई गई है। दिसम्बर में इसके डिजिटल प्रीमियर की तैयारी चल रही है।

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इस फिल्म के निर्माताओं में प्रियंका चोपड़ा ( Priyanka Chopra ) शामिल हैं। वे इन दिनों इस क्षेत्र में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही हैं। बतौर निर्माता उनकी ‘ईवल आई’ हाल ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई है। ‘द व्हाइट टाइगर’ को लेकर उम्मीदें इसलिए भी बढ़ती हैं कि निर्देशक के तौर पर इससे ईरान मूल के अमरीकी फिल्मकार रमीन बहरानी जुड़े हुए हैं। उन्हें हॉलीवुड की ‘मैन पुश कार्ट’, ‘चॉप शॉप’, ‘प्लास्टिक बैग’, ’99 होम्स’ और ‘फारेनहाइट 451’ के लिए जाना जाता है। रमीन बहरानी अपनी फिल्मों में तकनीकी भव्यता के बजाय भावनाओं पर ज्यादा जोर देते हैं।

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राजकुमार राव भी आएंगे नजर
‘द व्हाइट टाइगर’ का गरीब नायक बलराम हलवाई (आदर्श गौरव) बेहतर जिंदगी के सपने लेकर गांव से दिल्ली पहुंचता है। धीरे-धीरे वह महानगर में पैर जमाने की तिकड़में सीख जाता है। दिल्ली में अपने मालिक की हत्या कर वह बेंगलुरु पहुंचता है और जोड़-तोड़ से बड़ा कारोबारी बनकर उभरता है। फिल्म में प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार राव ( Rajkummar Rao ) भी नजर आएंगे। बढ़ते शहरीकरण में गुम होती कोमल भावनाओं को फिल्म कितने सलीके से पकड़ती है, यह फिलहाल वक्त की मुट्ठी में बंद है।

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