यह किस्सा है अभिनेता-निर्देशक रजत कपूर ( Rajat Kapoor ) की नई फिल्म ‘कड़क’ ( Kadakh ) का, जिसे हाल ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उतारा गया है। फिल्मकार मणि कौल ( Mani Kaul ) और कुमार शहानी ( Kumar Shahani ) के शागिर्द रजत कपूर बेशक अभिनेता अच्छे हैं, लेकिन इस फिल्म में उनका निर्देशन वैसा कमाल नहीं दिखा पाया, जो उनकी ‘आंखों देखी’ (2014) में नजर आया था। दिल्ली के छोटे-से मकान में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवार की मामूली-सी कहानी को उन्होंने उस फिल्म में गैर-मामूली ढंग से पेश किया था। ‘कड़क’ में उन्होंने सस्पेंस के उस्ताद अल्फ्रेड हिचकॉक की कुछ फिल्मों और बासु भट्टाचार्य की ‘आविष्कार’ का मिक्सचर तैयार करने की कोशिश की है, लेकिन न सस्पेंस बांध पाता है, न पति-पत्नी के रिश्तों का तनाव पूरी तरह उभर पाता है। सस्पेंस के नाम पर फिल्म में जो घटनाएं घूमती हैं, अगर हिचकॉक देख पाते तो वे भी ठहाका लगाकर पूछते- ‘यह सब क्या हो रहा है मेरे काबिल दोस्त?’
‘कड़क’ में रणवीर शौरी तथा खुद रजत कपूर के अलावा कई और मंजे हुए कलाकार मौजूद हैं- कल्कि कोचलिन, मानसी मुलतानी, मनोज पहवा, तारा शर्मा सलूजा, नुपुर अस्थाना, श्रुति सेठ, पलोमी घोष वगैरह। सिर्फ इनकी एक्टिंग के लिए 95 मिनट की इस डार्क कॉमेडी को देखा जा सकता है- बशर्ते इससे मनोरंजन की ज्यादा उम्मीद न रखी जाए।