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अंग्रेज कहने पर भड़क उठे थे फिल्म अभिनेता टॉम, MP के इस शहर से जुड़ी हैं कई यादें

जबलपुर के थियोलॉजिकल कॉलेज में पढ़ाते थे टॉम के पिता, भारत की मिट्टी से था प्यार

जबलपुरOct 01, 2017 / 08:11 pm

Premshankar Tiwari

interesting things related to Tom

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जबलपुर। हर भारतीय के दिल में बसी फिल्म क्रांति के अलावा अन्य हिन्दी फिल्मों में अक्सर अंग्रेज का किरदार निभाने वाले टॉम ऑल्टर ने शुक्रवार को दुनिया को अलविदा कह दिया। इस खबर ने उनके चाहने वालों को दुखी कर दिया। उन्हें चाहने वालों की इस फेहरिस्त जबलपुर के भी कई परिवार शामिल हैं। उनके बचपन की यादें यहां की मिट्टी में समाहित हैं। लोगों को वह दिन याद आ गया जब नाटक के मंच के दौरान टॉम जबलपुर आए थे। प्रवास के दौरान पत्रकारों से बात करते समय “अंग्रेज” कहने पर वे भड़क गए थे। उन्होंने कहा था – “वे भारतीय हैं और हर समय रहेंगे।”

जबलपुर में पढ़ाते थे पिता
जानकारों के अनुसार फिल्म अभिनेता टॉम आल्टर के पिता १९३० के दशक में जबलपुर के सिविल लाइंस स्थित लियोनार्ड थियोलॉजिकल कॉलेज में पढ़ाते थे। वे यहीं पर क्वार्टर नम्बर एक में रहते थे। टॉम का बचपन जबलपुर में ही बीता। उनके अंदाज में संस्कारधानी की मिट्टी की खुशबू थी। यही वजह है कि वे खुद को अंग्रेज की जगह सच्चा भारतीय समझते थे।

कई बार आए जबलपुर
टॉम का जबलपुर से गहरा नाता रहा है। बचपन की यादों को संजोए वे कई बार जबलपुर आए। वे सिविल लाइंस निवासी वीर सिंह और एग्नेश ठाकुर की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए वर्ष २००६ में जबलपुर आए थे। इस शादी में उन्होंने रात भर शेरो शायरी करके लोगों को मुग्ध कर दिया था। वीर सिंह बताते हैं कि टॉम बेहद नेक और जिंदादिल इंसान थे। जरूरतमंदों की मदद के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। जबलपुर में आखिरी बार वे २०११ में थियोलॉजिकल कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में आए थे। इससे पूर्व वे एक नाट्य समारोह में मिर्ज़ा गालिब नाटक के मंचन के लिए यहां आए थे। उन्होंने मिर्जा गालिब की बखूबी भूमिका निभाई थी।

मुंबई में ली अंतिम सांस
बताया गया है कि 67 वर्षीर्य के टॉम ऑल्टर ने शुक्रवार रात मुंबई स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से त्वचा के कैंसर से पीडि़त थे। सितंबर महीने की शुरुआत में ही उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कुछ दिन पहले ही वह अस्पताल से घर लौटे थे। अपने पीछे वे पत्नी कैरोल इवांस ऑल्टर, बेटे जेमी ऑल्टर और बेटी अफ़शान को छोड़ गए हैं।

बेटे ने की ये अपील
टॉम के बेटे जेमी ऑल्टर की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है, ‘दुख के साथ हमें सूचित करना पड़ रहा है कि अभिनेता, लेखक, निर्देशक, पद्मश्री और मेरे पिता टॉम ऑल्टर का निधन हो गया. हमारा आग्रह है कि उनके जाने के बाद उनकी निजता बनी रहेगी।Ó

चरस से की अभिनय की शुरुआत
अमेरिकी मूल के भारतीय कलाकार टॉम ऑल्टर का जन्म उत्तराखंड के मसूरी में 22 जून 1950 को हुआ था। ऑल्टर ने साल 1976 में रामानंद सागर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘चरसÓ से अभिनय की शुरुआत की थी। इस फिल्म में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। इस फिल्म में ऑल्टर मुख्य कस्टम अधिकारी बने थे।

बने अंग्रेज अधिकारी
टॉम की अगली और सबसे मशहूर फिल्मों में सत्यजीत रे की शतरंज के खिलाड़ी (1977) थी, जो मुंशी प्रेमचंद की इसी नाम की छोटी कहानी पर आधारित थी. इसमें वह वह अंग्रेज़ अधिकारी बने थे। इसके बाद उन्होंने श्याम बेनेगल की जूनून (1979), मनोज कुमार की क्रांति (1981) और राज कपूर की राम तेरी गंगा मैली (1985) में काम किया. मनोज कुमार की फिल्म क्रांति के ब्रिटिश अफसर के किरदार के लिए उन्हें जाना जाता है। हालांकि ऑल्टर अपने समय के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक थे, लेकिन बॉलीवुड में उन्हें बार-बार ब्रिटिश पुरुष के किरदार के रूप में ही दिखाया गया। हालांकि एक ‘गोराÓ होने का टैग उन्हें ख़ास पसंद नहीं था. एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा भी था कि वह विदेशी नहीं हैं। 1993 में उन्होंने सरदार पटेल की बॉयोपिक फिल्म सरदार में लॉर्ड माउंटबेटन का किरदार निभाया था। इसके अलावा उन्होंने हॉलीवुड की फिल्म वन नाइट विद द किंग में भी काम किया है। उनकी बेहतरीन अभिनय वाली फिल्मों में आशिकी, परिंदा, सरदार पटेल और गांधी शामिल हैं।

कई भाषाओं में काम
जानकारों के अनुसार 1977 में कन्नड़ फिल्म कन्नेश्वर रामा में उन्होंने काम किया था. इसके अलावा उन्होंने बंगाली, असमिया, गुजराती, तमिल और कुमांऊनी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने बेताल पच्चीसी जुनून, ज़बान संभाल के, भारत एक खोज, शक्तिमान, कैप्टन व्योम और यहां के हम सिकंदर जैसे लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिकों में काम किया था। पंकज कपूर के साथ डीडी मेट्रो पर आने वाले धारावाहिक ज़बान संभाल के से उनकी पहचान घर-घर में बन गई थी। आखिरी बार वे इस समय चल रहे धारावाहिक रिश्तों का चक्रव्यूह में दिखाई दिए थे। ऑल्टर अपने करिअर के दौरान रंगमंच से करीब से जुड़े रहे। उन्होंने 1979 में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और गिलानी के साथ मोटली प्रोडक्शंस की स्थापना की थी। कला और सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2008 में ऑल्टर को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

पत्रकार भी थे टॉम
टॉम पत्रकार भी रह चुके हैं। उन्होंने खेल पत्रकारिता की हुई है। वह स्पोट्र्स विकली, आउटलुक, क्रिकेट टॉक, संडे ऑब्ज़र्वर और डेबोनायर जैसी पत्रिकाओं में लिखा करते थे। 1989 में सचिन तेंदुल्कर का पहला इंटरव्यू करने वाले खेल पत्रकार टॉम ऑल्टर ही थे। ऑल्टर की प्रमुख रंगमंच प्रस्तुतियों में करीब ढ़ाई घंटे का एकल उर्दू नाटक मौलाना, बाबर की औलाद, लाल क़िले का आखऱिी मुशायरा, ग़ालिब के खत, तीसवीं शताब्दी, कोपेनहेगन, दिल्ली में ग़ालिब और विलियम डेलरिम्पल के नाटकीय रूपांतरण सिटी ऑफ डिजिन्स शामिल है। अभिनय के अलावा टॉम ऑल्टर लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने ‘द लॉन्गेस्ट रेसÓ, ‘रेरन ऐट रिआल्टोÓ और ‘द बेस्ट इन द वल्र्डÓ जैसी किताबें लिख चुके हैं।

दादा-दादी आये थे भारत
बताया गया है कि टॉम के दादा-दादी अमेरिका के ओहियो शहर से 1916 में भारत आए थे। भारत में वह मद्रास पहुंचे थे और कुछ समय बाद पाकिस्तान के लाहौर शहर में बस गए थे। टॉम ऑल्टर के पिता का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार भी दो भागों में बंट गया. उनके दादा के परिवार के कुछ लोग पाकिस्तान में रहे गए और जबकि टॉम के पिता भारत आ गए थे। भारत में इलाहाबाद, जबलपुर और सहारनपुर रहने के बाद उनका परिवार उत्तर प्रदेश के राजपुर (अब उत्तराखंड) जो कि देहरादून और मसूरी के बीच स्थित है, में बस गए. मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल से उन्होंने हिंदी और दूसरे विषयों में पढ़ाई की. उन्हें नीली ‘आंखों वाला साहबÓ कहा जाता था।

यहां से आया मोड़
वक्त के साथ टॉम ने टीचर का पेशा अपनाया। हिंदी सिनेमा खास रुचि थी। उन्होंने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की फिल्म आराधना देखी और एक तरह से इस पर फिदा हो गए। फिर क्या था वे कुछ इस तरह प्रभाव में आए कि हिन्दी सिनेमा में जाने का मन बन लिया। यह फिल्म उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट थी। इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अभिनय को ही अपना करिअर बनाने की ठान ली और पुणे के भारतीय फिल्म और टेलीविजऩ संस्थान में दाखिला ले लिया। यहां उन्होंने 1972 से 1974 तक उन्होंने अभिनय की पढ़ाई की। एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, हरियाणा के जगाधरी के लिए भी कुछ अच्छी बातें हैं। मैं वहां साधारण शिक्षक ही बनकर रह जाता अगर मैंने राजेश खन्ना और शर्मिला के रोमांस को फिल्म आराधना में न देखा होता। सिनेमा के प्रति मेरे लत की यह शुरुआत थी।

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