दिलीप कुमार और राज कपूर को फिल्म पसंद आई। राज कपूर का कहना था कि इसमें थोड़ा और रोमांस होना चाहिए था। राजेंद्र कुमार की शिकायत थी कि फिल्म में मां का किरदार नहीं है और जय-वीरू की दोस्ती अजीब तरह से दिखाई गई है। इंडस्ट्री के एक खेमे ने ‘ठंडे छोले’ बताकर फिल्म का उपहास उड़ाया। इस खेमे का कहना था कि गब्बर सिंह (अमजद खान) फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। प्रदर्शन के पहले दिन मिनर्वा को छोड़ मुम्बई के बाकी सिनेमाघरों में भीड़ नहीं उमड़ी तो फिल्म के निर्माता जी.पी. सिप्पी (रमेश सिप्पी के पिता) की चिंता और बढ़ गई। उन दिनों मुम्बई में मूसलाधार बारिश हो रही थी। तीन दिन बाद ज्यादातर सिनेमाघरों में ‘शोले’ का कारोबार 50 फीसदी से कम रहा।
दूसरी तरफ इसी के साथ 15 अगस्त को सिनेमाघरों में उतारी गई छोटे बजट की धार्मिक फिल्म ‘जय संतोषी मां’ में भीड़ बढ़ती जा रही थी। ‘शोले’ के कई वितरक शिकायत कर रहे थे कि फिल्म काफी लम्बी है। इन शिकायतों को लेकर रमेश सिप्पी फिल्म को दोबारा संपादित करने पर विचार कर रहे थे कि दूसरे हफ्ते के दौरान मुम्बई के सिनेमाघरों में ‘शोले’ देखने वालों की भीड़ उमडऩे लगी। भीड़ में कई ऐसे लोग भी थे, जो पहले हफ्ते ही फिल्म देख चुके थे। माउथ पब्लिसिटी के दम पर दिन-ब-दिन ‘शोले’ चुम्बक में तब्दील होती गई। आगे जो हुआ, वह ऐसा सुनहरा इतिहास है, जिसे लिखने का सपना हर फिल्मकार देखता है। मिनर्वा सिनेमाघर में यह फिल्म पांच साल से ज्यादा चली।
इंटरनेट पर आज भी लोकप्रिय
सिनेमाघरों के बाद ‘शोले’ वीडियो और सीडी बाजार में छाई रही। अब यह इंटरनेट पर सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्मों में शामिल है। इसके निर्माता जी.पी. सिप्पी ने एक बार कहा था कि दुनियाभर में जितने लोग ‘शोले’ देख चुके हैं, उनका आंकड़ा जुटाया जाए तो यह शायद भारत की आबादी से भी ज्यादा होगा।