तापसी का मानना है कि टीनेएज में लड़कियां सबसे ज्यादा छेडख़ानी का शिकार होती हैं…लेकिन डरे नहीं…आगे बढ़ें…आवाज उठाएं…
मुंबई। अभिनेत्री तापसी पन्नू अपनी आगामी फिल्म पिंक को लेकर चर्चा में हैं। इस फिल्म में उन्होंने एक मोलेस्टेशन का शिकार लड़की का किरदार निभाया है। बताया जाता है कि इस फिल्म की कहानी निर्भया कांड से प्रेरित है, लेकिन फिल्मकारों ने इससे साफ इंकार कर दिया है। इस फिल्म का मुख्य आकर्षण हैं अमिताभ बच्चन, जो एक वकील की भूमिका में नजर आएंगे। लेकिन कहानी के केंद्र में तापसी हैं और बेहतरीन अभिनय किया है। अमिताभ भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते। हम आपको बता दें कि तापसी दिल्ली से हैं। यही उन्होंने अपने जीवन के कई अहम साल बिताए हैं। एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में टीनेएज में हुई छेडख़ानी पर खुलकर बोलीं…
लोग मुझ पर जानबूझ कर गिरते और रगड़ते…
तापसी की नजर में छेडख़ानी का शिकार होना लड़कियों के लिए आम बात है। वह दर्दभरी मुस्कान के साथ कहती हैं, ‘यह तो हमारी रोज की लड़ाई है। मेरे साथ कोई मोलेस्टेशन टाइप का हादसा नहीं हुआ, मगर हां राह चलते हर रास्ते में आते-जाते मैं शारीरिक छेडख़ानी का शिकार जरूर हुई हूं। आज सोचती हूं कि काश उस वक्त इतनी हिम्मत होती कि मैं पत्थर उठा पाती या फिर अपनी आवाज बुलंद कर पाती। मैं स्वछंद जरूर थी, मगर तब मैं अपने टीनेज में थी और उस वक्त मैं कॉलेज के शुरुआती दौर में थी। बचपन से ही हमें गलियों में मत जाओ, छोटे कपड़े मत पहनो, अजनबियों से बात नहीं करो, जैसे बातों को लेकर अवेयर किया जाता रहा है, इसलिए जब भी हमारे साथ कुछ होता है, तो लगता है कि गलती मेरी ही है। बचपन से ही हमारा माइंड सेट ऐसा बना दिया जाता है। ईव टीजिंग और फब्तियां कसना जैसी बातें तो आम हैं, जिसे मैंने सहा है।
जब हमारी दिल्ली में नगर कीर्तन हुआ करता था… जब गुरु नानकजी का जनम दिवस मनाया जाता है। हर गुरु पूरब पर मेरे साथ ये हादसा होता था कि कोई न कोई कहीं न कहीं मुझे छू लेता था। मैं बहुत डर जाया करती थी, इतना डरती थी कि कुछ कह नहीं पाती थी। कॉलेज के शुरुआती दिन थे वे। उस साल भी मेरे मन में ऐसी ही किसी दुर्घटना की आशंका थी कि मुझे कोई अभद्र तरीके से छूने वाला है। अपने इसी डर के कारण अपना हाथ अपने बैग के पीछे हाथ रख कर चला करती थी। जैसे ही किसी ने मुझे छुआ, मैंने उस हाथ को पकड़ लिया, मैं बुरी तरह से डरी हुई थी। इतनी ज्यादा कि मैंने पलट कर भी नहीं देखा कि मैंने किसका हाथ पकड़ा हुआ है, मगर मैंने उस हाथ को कस कर मरोड़ दिया और बिना रुके आगे चलती गई। बदन को छूने वाले हादसे तो मेरे साथ बहुत हुए हैं।
जब कॉलेज के जमाने में मैं दिल्ली में बसों में सफर किया करती थी। उस वक्त लोग जानबूझकर मुझ पर गिरते, खुद को मुझ पर रगड़ते, चूंटी काटते और मैं ऐसे चुप रहती जैसे मेरी गलती हो। उस वक्त मैं कुछ नहीं कह पाई थी, मगर मुंबई आने के बाद मुझमें काफी हिम्मत आ गई थी। मुझे याद है एक बार मैं बांद्रा में रोड क्रॉस कर रही थी और दो बाइक सवार मुझपर कमेंट करके आगे बढ़े। मैं भी वहीं थमक कर खड़ी हो गई कि तुम आओ दोबारा, तुम्हारी ऐसी-तैसी न कर दी तो! मगर मेरे टफ लुक को देखकर वे लड़के नौ दो ग्यारह हो गए। मुझे लगता है काश, मैंने अपने टीनेज में थोड़ी-सी हिम्मत दिखाई होती। वैसे हर वक्त झांसी की रानी बनना भी हिमाकत है, लेकिन अपनी आवाज जरूर उठानी चाहिए।