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भावनाओं के कई रंग छलकाए Suchitra Sen ने, फिल्मों से रिटायर होकर अज्ञातवास में रहीं

locationमुंबईPublished: Jan 16, 2021 11:52:57 pm

किरदार, मूड और माहौल की गहरी समझ रखने वाली अभिनेत्री
फिल्मी ग्लैमर की चकाचौंध में जमीर को जगाए रखा
सत्यजीत राय और राज कपूर की फिल्मों के प्रस्ताव नकारे

suchitra sen

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-दिनेश ठाकुर
सुचित्रा सेन ( Suchitra Sen ) पर ‘ममता’ में रूहानी गीत फिल्माया गया था- ‘रहें न रहें हम, महका करेंगे/ बनके कली, बनके सबा, बागे-वफा में।’ आज (17 जनवरी) उन्हें दुनिया छोड़े सात साल हो रहे हैं। इस गीत के अनुरूप फिल्म-प्रेमियों की यादों में वे आज भी कभी कली, तो कभी सबा (सुबह की पवन) बनकर महक रही हैं। सुचित्रा सेन का भावनाओं के कई-कई रंग छलकाने वाला चेहरा कभी ‘देवदास’ (दिलीप कुमार) की पारो, कभी ‘सप्तपदी’ की चंचल-शोख रीना ब्राउन, कभी ‘मुसाफिर’ की धीर-गंभीर शकुंतला, तो कभी ‘बम्बई का बाबू’ की बिंदास माया के रूप में यादों को महका जाता है। किरदार, मूड और माहौल की गहरी समझ रखने वालीं सुचित्रा सेन भारतीय सिनेमा की उन चंद अभिनेत्रियों में से थीं, जिन्होंने ग्लैमर की चकाचौंध में अपने जमीर को जगाए रखा। वर्ना फिल्मी दुनिया में सिक्कों की खनक कइयों के जमीर के लिए लोरी का काम करती है।

कलात्मक आईना मानती थीं अभिनय को
सुचित्रा सेन के लिए अभिनय न कारोबार था, न वक्त काटने का जरिया। वे इसे कलात्मक आईना मानती थीं, जो उन्हें उनकी रूह, मन, जज्बात से रू-ब-रू होने का मौका देता था। फिल्में चुनने के मामले में इस कदर सतर्कता बरतती थीं कि उनकी समकालीन अभिनेत्रियों को हैरानी होती थी। सत्यजीत राय और राज कपूर की फिल्मों के प्रस्ताव उन्होंने यह कहकर नकारे कि वे ऐसे किरदारों में नहीं उतरना चाहतीं, जिनमें सहजता तथा सुकून की गुंजाइश न हो।

गिनती की हिन्दी फिल्मों में नजर आईं
सुचित्रा सेन बांग्ला फिल्मों में ज्यादा सक्रिय रहीं। अपनी पहली हिन्दी फिल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बावजूद वे हिन्दी की गिनती की फिल्मों में नजर आईं। इनमें देव आनंद के साथ ‘बम्बई का बाबू’ (यहां उन पर सदाबहार ‘दीवाना मस्ताना हुआ दिल’ फिल्माया गया) और संजीव कुमार के साथ ‘आंधी’ (तुम आ गए हो, नूर आ गया है) शामिल हैं। ‘आंधी’ में उनका किरदार कुछ-कुछ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित था।

उत्तम कुमार के साथ जादू जगाती थी जोड़ी
बांग्ला फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ उनकी जोड़ी वही जादू जगाती थी, जो हिन्दी फिल्मों में राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी जगाया करती थी। अपने कॅरियर की करीब 60 में से आधी फिल्में उन्होंने उत्तम कुमार के साथ कीं। ‘ममता’ उनकी बांग्ला फिल्म ‘उत्तर फाल्गुनी’ का रीमेक थी। इसमें उन्होंने तवायफ और उसकी वकील बेटी के दोहरे किरदार अदा किए। एक और बांग्ला फिल्म ‘दीप जेले जाइ’ उनके अभिनय की गहराई के लिए याद की जाती है। इसमें उन्होंने संजीदा, मासूम नर्स का किरदार अदा किया। यह फिल्म हिन्दी में ‘खामोशी’ के नाम से बनाई गई। इसमें वहीदा रहमान नर्स के किरदार में हैं।

ग्रेटा गार्बो के नक्शे-कदम पर
सत्तर के दशक के आखिर में अचानक फिल्मों से संन्यास लेकर सुचित्रा सेन ने अपने प्रशंसकों को चौंका दिया। चौंकाने वाली बात यह भी थी कि इसके बाद उन्होंने दुनिया से पूरी तरह कटकर खुद को घर की दीवारों तक सीमित कर लिया। उन्होंने दादा साहब फाल्के अवॉर्ड लेने से भी इनकार कर दिया, क्योंकि इसे ग्रहण करने दुनिया के सामने आना पड़ता। फिल्मों से कटने के बाद इसी तरह का अज्ञातवास हॉलीवुड की अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो ने काटा था।

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