विवाद इतना बढ़ गया कि बातचीत हो गई बंद:
विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ‘दिल पुकारे..’ गीत गाया। मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावे मराठी और तेलगू फिल्मों के लिए भी गाने गाए।
मोहम्मद रफी अपने करियर में 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किये गये। वर्ष 1965 में रफी को पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। मोहम्मद रफी बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रशंसक थे। मोहम्मद रफी फिल्म देखने के शौकीन नही थे लेकिन कभी-कभी वह फिल्म देख लिया करते थे।
यह फिल्म देखने के बाद हो गए अमिताभ के फैन:
एक बार रफी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘दीवार’ देखी थी। ‘दीवार’ देखने के बाद रफी अमिताभ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गये। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म नसीब में रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत ‘चल चल मेरे भाई..’गाने का अवसर मिला। अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुये थे। जब रफी अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपने परिवार के लोगो को अपने पसंदीदा अभिनेता अमिताभ के साथ गाने की बात को खुश होते हुये बताया था। अमिताभ के अलावा रफी को शम्मी कपूर और धर्मेन्द्र की फिल्में भी बेहद पसंद आती थी। मोहम्मद रफी को अमिताभ -धर्मेन्द्र की फिल्म शोले बेहद पंसद थी और उन्होंने इसे तीन बार देखा था।
हो गया था मौत का आभास:
30 जुलाई 1980 को फिल्म ‘आस पास’ के गाने ‘शाम क्यू उदास है दोस्त ..’गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा, ‘शुड आई लीव’ जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गए थे क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नही की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को हीं छोड़कर चले गए।