दुष्यंत कुमार का शेर है- ‘यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां/ मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा।’ शेखर कपूर ( Shekhar Kapoor ) की फिल्म ‘पानी’ इसी तरह ठहरी हुई है। उन्होंने 2010 के कान्स फिल्म समारोह ( Cannes Film Festival ) में ‘पानी’ बनाने का ऐलान किया था। दस साल बाद भी इसकी निर्माण प्रक्रिया एक इंच आगे नहीं बढ़ी है। शेखर कपूर अब कह रहे हैं कि अगर ‘पानी’ बनी तो वे इसे सुशांत सिंह को समर्पित करेंगे। यहां ‘अगर’ फिर अंदेशे पैदा करता है कि क्या इस प्रबुद्ध फिल्मकार का यह सपना कभी सेल्यूलाइड पर साकार हो पाएगा? ‘पानी’ की थीम काफी हटकर है। इसमें भविष्य के ऐसे दौर की कल्पना की गई है, जहां पानी पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है और आम लोग इसकी एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऑस्कर अवार्ड ( Oscar Awards ) समारोह में भारत की ‘जय हो'( Jai Ho Song ) के बाद चर्चा थी कि ‘स्लमडोग मिलिनेयर’ ( Slumdog Millionaire ) के निर्देशक डैनी बॉयल ‘पानी’ ( Paani Movie ) से बतौर निर्माता जुड़ेगे, ऋतिक रोशन ( Hrithik Roshan ) नायक होंगे और ए.आर. रहमान ( A R Rahman ) संगीत देंगे। फिर 2013 में खबर आई कि यह यशराज फिल्म्स के धन से बनेगी और सुशांत सिंह ( Sushant Singh ) अहम किरदार में होंगे। बाद में इस कंपनी ने भी फिल्म से पल्ला झाड़ लिया।
‘मासूम’, ‘मि. इंडिया’ और ‘बैंडिट क्वीन’ के लिए पहचाने जाने वाले शेखर कपूर मूडी फिल्मकार हैं। सभी सृजनधर्मी फिल्मकार मूडी होते हैं। इनकी पटरी फिल्म इंडस्ट्री के उन धन कुबेरों के साथ कम बैठती है, जो खर्च से पहले आमदनी का हिसाब-किताब पक्का कर लेना चाहते हैं। निर्माताओं से तनातनी के कारण शेखर कपूर कई फिल्मों को अधूरी छोड़ उनसे अलग हो चुके हैं। नब्बे के दशक में उनके निर्देशन में रेखा, नसीरुद्दीन शाह, आमिर खान और रवीना टंडन को लेकर विज्ञान फंतासी ‘टाइम मशीन’ का निर्माण शुरू हुआ था। यह फिल्म अब तक अधूरी पड़ी है। बॉबी देओल की पहली फिल्म ‘बरसात’ शेखर कपूर के निर्देशन में बनने वाली थी। निर्माता से खटपट के बाद इसका निर्देशन राजकुमार संतोषी को सौंपना पड़ा। इसी तरह ‘दुश्मनी’ और ‘जोशीले’ को भी वे अधूरी छोड़कर अलग हो गए। दोनों फिल्मों को जैसे-तैसे पूरा कर सिनेमाघरों में उतारा गया।
शेखर कपूर के लिए ऐसा निर्माता तलाशना आसान नहीं है, जो उन्हें फिल्म बनाने की पूरी आजादी देकर पूंजी निवेश करे। यही मुश्किल सालों पहले के. आसिफ ने ‘मुगले-आजम’ बनाते वक्त झेली थी। निर्माता के रूप में शापूरजी पालोनजी मिलने के बाद यह क्लासिक फिल्म 16 साल में पूरी हो सकी। उस जमाने के डेढ़ करोड़ रुपए की लागत वाली इस फिल्म ने रेकॉर्डतोड़ 5.5 करोड़ रुपए कमाए थे।