एला रिसब्रिजर अपनी किताब ‘मिडनाइट चिकन’ को एक उम्मीद भरी कहानी कहती हैं। एला के मुताबिक यह जीवित रहने की इच्छा के बारे में है। लेकिन इस किताब से पहले उन्होंने खुद अपनी जिंदगी खत्म करने का प्रयास किया था। अवसाद के दिनों में एला ने एक बार बस के नीचे आकर आरत्महत्या करने की कोश्ािश की थी। लेकिन वे बच गईं। अस्पताल में इलाज के दौरान वे खुद को अक्सर नींद में खाना पकाते हुए देखा करती थीं, खासकर पाई बनाना। एला को अस्पताल में बिताए अपने दिनों में बस एक यही बात याद थी। घर आने के बाद उन्होंने इस पर गहनता से विचार किया और कुकिंग ट्यूटोरियल्स के जरिए उन्होंने वैसी ही पाई बनाई। यह उनके लिए एक महत्त्वपूर्ण जीत थी जिसने उन्हें इस बात का एहसास करवाया कि वे अब भी जिंदा हैं और बहुत कुछ कर सकती हैं। उन्होंने अपनी पुरानी जिंदगी को भुलाकर खाना बनाने पर ध्यान केन्द्रित किया। अपने अवसाद से उबरकर उन्होंने मिडनाइट चिकन जैसी बेस्ट सैलर किताब लिखी जो एक तरह से उनकी जीत का दस्तावेज है। उन्होंने इस किताब को केवल कुकिंग बुक की तरह नहीं लिखा है बल्कि इसे एक संस्मरण की तरह लिखा है। २१ साल की उम्र में वे शायद ऐसा कुछ करने वाली नहीं थी। लेकिन कुकिंग ने उनकी जान बचाई थी। वे इसे दूसरों तक पहुंचाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने किताब की शक्ल में इसे हमारे सामने पेश किया है। उन्होंने अवसाद के दिनों के अपने अनुभव के साथ किताब में खुशी के लिए नुस्खे के रूप में व्यंजनों को पेश किया है।
एक कुकबुक से परे कई लेखकों ने अपनी किताब से एक सकारात्मक मानसिक प्रभाव निर्मित करने का भी प्रयास किया है। उन लोगों के लिए जो खुद को मनचाहा खाने से रोकते हैं और जो खाते हैं वह भी औषधि से ज्यादा कुछ नहीं होता। रूबी टंडोह ऐसी ही लेखिका है जिनकी हालिया किताब ‘ईट अप!फूड, एपेटाइट और ईटिंग व्हाट यू वांट’ हैल्थ फूड और डाइट इंडस्ट्री के तथाकथित खाने संबंधी प्रतिबंधों के खिलाफ एक हथियार के रूप में लोगों को मुस्कुराने का अवसर देती है। यह किताब भले ही खाने के शौकीन लोगों के लिए है लेकिन रूबी ने भी पूरी तरह से खाना बनाना नहीं छोड़ा है। वह कहती हैं कि खाना पकाने का उनका सफर साल २016 में शुरू हुआ था। उस समय वे युवाओं के खान-पान संबंधी आदतों पर शोध कर रही थीं। उन्होंने पाया कि फिटनेस और फैट कम के लिए युवा खासकर लड़कियां किस तरह खाने को नकार रही थीं। इससे उनका वजन तो नहीं बढ़ रहा था लेकिन स्वास्थ्य संबंधी अन्य परेशानियों ने उन्हें आ घेरा था। वहीं उन्होंने कुछ कुकिंग शो में भी हिस्सा लिया था। जहां उन्होंने पाया कि खाना बनाने से उन्हें सकारात्मक ऊर्जा और अंदरूनी खुशी मिलती थी।
ब्लॉग लेइट्स क्यूलिनारिया के संस्थापक डेविड लेइट को भी कुकिंग ने जिंदगी की परेशानियों से उबारने में मदद की है। मेंटल हैल्थ से जुड़ी परेशानियों से संघर्ष के दिनों को डेविड ने अपनी किताब ‘नोट्स ऑन ए बनाना’ में खुलकर लिखा है। यह किताब उनके संस्मरण के रूप में है जिसमें वे अपने फूड लव और मैनिएक डिप्रेशन से बाहर निलने के बाद अपने पहले पेशेवर फूड वर्क को याद करते हैं। उनका परिवार कॉलेज के एक प्रोफेसर के लिए खाना बनाता था। उन्होंने पाया कि प्रोफेसर को अपने खाने में सभी अवयवों को एनके सही क्रम में पसंद था। इस आदत ने डेविड को व्यवस्थित रहना, पेशेवर, चीजों पर आपना नियंत्रण रखना और अपने काम में आनंद की अनुभूति का अनुभव करना सिखाया। उन्होंने खाना बनाने और उसे सजाने में एक अप्रत्याशित खुशी और एक्सक्लूसिव रोमांच मिलने लगा। इसने उन्हें उनके संघर्ष के दिनों और मानसिक रोगों से लडऩे के समय बहुत सकारात्मक ऊर्जा दी।
लेइट कहते हैं कि जब वे परिवार और दोस्तों के लिए खाना बनाते हैं तो यह उन्हें खुशी देता है। वे अपनों की देखभाल कर खुद की देखभाल करने की भावना महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि दोहराव वाला कोई भी काम उन्हें सुकून देता है। सब्जियों को काटना, मसाला बनाना, मिक्सी में ग्राइंड करने से लेकर तेल में तलना या भूनना इन सब चीजों से उन्हें खुशी मिलती है।
मिसफिट फूड्स की सह-संस्थापक एन यांग खाना पकाने के अपने रिश्ते को ‘डाइट कंट्रोलÓ के रूप में बिल्कुल भी नहीं देखती हैं। एक मैगजीन के लिए जुलाई में लिखे अपने एक लेख में यांग ने बताया कि उसे २५ साल की उम्र में अवसाद का पता चला। अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए उसने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से दूरी बना ली और इलाज में चिकित्सकों का सहयोग करने लगीं। विभिन्न थेरेपी में अपने निकट संबंधियों और दोस्तों के लिए खाना बनाना भी एक नियमित रुटीन था जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया। भोजन बनाने की प्रक्रिया को अवसाद और तनाव के प्रबंधन के कुशल तरीके के रूप में की जाती है। यांग का कहना है कि मन के भीतर गहरी पैठी चिंताएं आसानी से दूर नहीं होती जैसा कि हम आमतौर पर उम्मीद करते हैं। लेकिन खाना बनाने के बाद उन्हें एक उपलब्धि की भावना का एहसास होता था। साथ ही एक निर्धारित समय में इसे पूरा करने से खुद पर आत्मविश्वास भी आता है। यांग के अनुसार यह पेंटिंग बनाने की तरह ही एक रचनात्मक संतुष्टि की अनुभूति होती है। साथ ही इस बाा की भी अतिरिक्त संतुष्टि और शांति होती है कि जिन लोगों से हम प्यार करते हैं उनके समक्ष अपने प्यार और भावनाओं को प्रदर्शित कर पा रहे हैं। जिसे वे चखकर महसूस कर सकते हैं। यांग का कहना है कि खाना बनाना वास्तव में एक शक्तिशाली और चिकित्सीय थेरेपी है।
खाना पकाना निजी क्षति या खोने की भावना को बहुत ही प्रभावी ढंग से कम कर हमें उबरने में मदद करता है। जुलाई में पूर्व क्रिमिनल बैरिस्टर ओलिविया पॉट्स की किताब ‘ए हाफ बेक्ड आइडियाÓ में उन्होंने अपनी मां के गुजर जाने के बाद उस दुख से बाहर निकलने और खुद को संभालने का जिक्र किया है। वे कहती हैं कि खाना पकाना अपने प्रियजनों को हमेशा अपने पास महसूस करने का भी एक कारगर तरीका हो सकता है। ऐसे ही ब्रिटिश कुकबुक लेखिका डायना हेनरी को उनके पोस्ट नैटल डिप्रेशन से उबरने में भी खाना बनाने की उनकी आदत ने बहुत मदद की। इसके जरिए ही वे अपनी नियमित जिंदगी में वापस लौट सकीं। उनका कहना है कि खाना बनाना अवसाद, तलाक या लंबी बीमारी में किसी बाम या औषधि से कम नहीं होता। ऐसे ही यांग का कहना है कि हर किसी में अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के लक्षण अलग-अलग होते हैं। खाना बनाना ही एकमात्र उपाय नहीं है लेकिन यह अवसाद और तनाव से उबरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उस दौरान होने वाली पीड़ा, अकेलेपन और चिंता को दूर करने में यह बेहतरीन उपाय है, जो जिंदगी बचाने का माद्दा रखता है।