तेहरान के जिन अधिकारियों ने मेरे घर में छापेमारी के बाद मुझे और मेरी पत्नी को गिरफ्तार किया उनकी इसमें कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने मुझे सिर्फ इसलिए पकड़ा था क्योंकि मैं ‘वाशिंगटन पोस्ट’ का संवाददाता और अमरीकी नागरिक था। मुझे इसकी उम्मीद भी बहुत कम थी कि अमरीकी सरकार मेरी रिहाई के लिए प्रयास करेगी। बंधक बनाए गए लोग जहां के रहने वाले हैं वहां की सरकार को निर्णय लेना होता है। क्या वे फिरौती देंगे? क्या वे कुछ भी कहने से मना कर देगी या कोई दूसरी रणनीति अपनाएगी? सिमॉन बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि बंधक बनाए जाने की स्थिति में निर्णायक मोड़ पर पहुंचना मुश्किल होता है। इसका कोई एक जवाब नहीं है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। सिमॉन ने बंधकों की सुरक्षित वापसी के लिए तीन प्रमुख कारक बताए हैं।
2012 में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के एंटी टेररिज्म गुरु रहे डेविड एस. कोहेन ने कहा था कि अपहरणकर्ता की मांग को पूरा न किया जाए तो ऐसी घटनाओं में कमी आएगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि कई स्थितियों में पैसा न देना बंधकों की जान खतरे में डालने के समान है। ऐसे में निर्णय महत्वपूर्ण होता है।
पहला क्या अपहृत व्यक्ति का फिरौती बीमा है, दूसरा आपराधिक संगठन अपहरण से जुड़ा है या नहीं? और तीसरा, व्यक्ति क्या ऐसे राष्ट्र का है जो फिरौती देने में सक्षम है? इन तीन में से यदि एक का जवाब हां में है तो सुरक्षित रिहाई संभव है। अगर जवाब ना में है तो अपहृत व्यक्ति का जीवन खतरे में है। वे कहते हैं कि फिरौती देना आपराधिक घटनाओं को बढ़ावा देने के बराबर है।
जेसन रेजैनपुस्तक विश्लेषक वाशिंगटन पोस्ट, वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत