scriptद इम्मोर्टल्स – नसीर अहमद | The Immortals - Naseer Ahamad | Patrika News

द इम्मोर्टल्स – नसीर अहमद

Published: Mar 23, 2015 05:06:00 pm

किताब पढने से यह पता चलता है कि मुस्लीम समुदाय ने भी स्वतंत्रता संघर्ष में
बराबरी की भुमिका निभाई थी

आजादी के अड़सठ साल बाद भी अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए लड़ने वाले हिरो जिन्हें हम सबने किताबों में पढ़ा है, आज भी पढ़ने में उतने ही नये लगते हैं। वे लोग जिन्होंने आजादी दिलाइ आज वे भारत के इतिहास में हीरो हैं लेकिन क्या वे अकेले आजादी दिला पाते यदि देश के और भी हजारों लोगों ने उनका साथ नहीं दीया होता। ुस दौरान कई लोगों की जानें गई शायद जितने लोगों के बारे में हम जानते हैं उनसे कई गुना ज्यादा। नसीर अहमद ने ऎसे ही कुछ भुले हुए मुस्लीम समुदाय के 155 स्वतंत्रता सैलानियों के बारे में लिखा है।

अहमद इतिहासकार नहीं हैं बल्की एक पत्रकार हैं और आंध्रप्रदेश के गंटुर में आपना छोटा सा व्यवसाय करते हैं। अहमद रिसर्च कर रहे हैं कि स्वतंत्रता के लिए मुस्लीम समुदाय के कितने लोगों ने किस तरह से लड़ाई लड़ी और जो की हिन्दु समुदाय के द्वारा दरकिनार किये गए। किताब पढने से यह पता चलता है कि मुस्लीम समुदाय ने भी स्वतंत्रता संघर्ष में बराबरी की भुमिका निभाई थी।

पिछले 15 सालों से अहमद इसी विषय पर तेलेगु में 10 किताबें लिख चुके हैं, द इम्मोर्टल्स अहमद की पहली किताब है जिसका तेलेगु के साथ-साथ अंग्रेजी में भी अनुवाद है।

किताब काफी बड़ी और भारी है जिसके लेफ्ट साइड पर बेलेक एंड व्हाइट चित्र बने हुए हैं और राइट साइड पर उपर की तरफ आधे हिस्से में तेलेगु और नीचे अंग्रज का अनुवाद लिखा हुआ है। किताब के संक्षिप्त लिका हुआ है, इन स्वतंत्रता सैलानियों का परिवार, पढ़ाई, करियर, केंपेन, राजनितिक विचारधारा कास कर पाकिस्तान के बारे में। लेकिन इन लिमिटेशन के बावजूद आप इनके बारे में और भी ज्यादा जानने के बारे में आतुर रहेंगे जिन्हें लीक से दूर कर भुला दिया गया है।

1857 की क्रांती में लड़े शहीदों में लिआकत अली जिन्हें अंग्रेजी सरकार के द्वारा 7 जुलाई 1857 को इसलिए फांसी की सजा सुनाइ गई थी कि अली ने अपने आप को बहादुर शाह जफर और पीर अली का प्रतिनिधि बताया जिन्होंने दानापुर के अंग्रेजों के आर्मी केंप पर हमला किया था।

इसके साथ ही दूसरे कई प्रसिध्ध लोग जैसे हाफिज मुहम्मद अली बरकतुल्ला भोपाली जो अमरिका की गदर पार्टी के वाइस प्रेसिडेंट बने थे और जो जापान में प्रोफेसर रहे। हाफिज मुहम्मद निर्वासन की सरकार में भारत के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। किताब में और भी ऎसे कई लोगों के बारे में जिक्र है जिन्होंने ना केवल भारत में बल्की विदेश में भी भारत के लिए अपना योगदान दिया है।

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