किताब में उन्होंने बढ़ती उम्र की महिलाओं के लिए सोचने के तरीके के बारे में बताया है। उन्होंने लिखा है कि इस उम्र में जो दिल में आए खुलकर करना और कहना चाहिए क्योंकि इसी से शरीर को एक विशेष तरह की ऊर्जा मिलती है। भले ही वे लिखने, घूमने और चॉकलेट खरीदने का शौक क्यों न हो। कहीं नहीं जा सकते तो एक बार डॉक्टर के पास गाड़ी खुद चलाकर जाएं आपको एक अलग तरह की खुशी का अहसास होगा। किताब में लिखा है कि जब किसी असहनीय शारीरिक दर्द से गुजर रहे हैं तो अपना पसंदीदा म्यूजिक सुनें, ध्यान लगाएं। हर तकलीफ कम हो जाएगी। किताब में लिखा है कि ढलती हुई उम्र जिंदगी का वह पड़ाव होता है जिसमें महिला को अपने जीवन के खुशनुमा पलों को भी याद करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर और मन को गजब की ऊर्जा मिलती है जिससे कई तरह की परेशानियों दूर होती हैं। मन में कोई भी बात न रखें इससे मानसिक और शारीरिक विकार उत्पन्न होता है जो कई रोगों का कारण है।
निराशा और घबराहट महिलाओं को ताउम्र सताने वाली समस्या है। ऐसी स्थिति ढलती हुई उम्र में न हो इसके लिए खुद का खयाल रखने के साथ तनाव को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। जब ऐसा कर लेंगी तो सारी चिंता खुशी में बदल जाएगी। जीवन में कड़वी सच्चाई से भी गुजरना पड़ता है इससे पार पाने के लिए हिम्मत जरूरी है।
शिबी ओ सुलिवन, पुस्तक विश्लेषक , वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत